
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को दिए जा रहे 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि 13 प्रतिशत होल्ड किए गए पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया में देरी क्यों हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में प्रदेश के मुख्य सचिव (CS) से स्पष्ट जवाब तलब किया है। कोर्ट ने पूछा कि इन पदों पर नियुक्तियों में दिक्कत क्या है, जबकि मामला पहले से विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट ने 13% पदों पर रोक नहीं लगाई है।
क्या है मामला?
याचिका ओबीसी महासभा की ओर से दाखिल की गई है, जिसमें वर्षों से लंबित पड़ी नियुक्तियों पर शीघ्र प्रक्रिया शुरू करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट अनुमति के बावजूद इन पदों को 'होल्ड' पर रखे हुए है, जिससे ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को नुकसान हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
"जब 13% पदों पर रोक नहीं है तो फिर नियुक्ति में रुकावट क्यों? राज्य सरकार इस पर जवाब दे।"
अगली सुनवाई:
कोर्ट ने मुख्य सचिव से जवाब दाखिल करने के लिए समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख जल्द तय करने के संकेत दिए हैं।
राजनीतिक असर:
इस मामले ने एक बार फिर से मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर सियासत गर्मा दी है। विपक्ष पहले ही सरकार पर ओबीसी आरक्षण के साथ "खिलवाड़" करने का आरोप लगा चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद शिवराज सरकार पर इस मुद्दे को लेकर दबाव और बढ़ सकता है।
पृष्ठभूमि:
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मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में OBC आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया था।
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इस निर्णय पर कई याचिकाएं दायर हुईं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
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सुप्रीम कोर्ट ने 27% में से 13% पदों पर नियुक्तियों की अनुमति दी थी, जबकि शेष 14% को न्यायिक निर्णय तक रोकने का निर्देश दिया था।