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इंदौर के बूढ़े शास्त्री ब्रिज पर नया प्रयोग, लोहे की जगह अब प्लास्टिक के डिवाइडर लगाए

इंदौर के बूढ़े शास्त्री ब्रिज पर नया प्रयोग, लोहे की जगह अब प्लास्टिक के डिवाइडर लगाए

शहरवासियों की मूलभूत समस्याओं के समाधान की बजाय नगर निगम सौंदर्यीकरण के नाम पर अंधाधुंध खर्च कर रहा है। इंदौर के 60 साल पुराने शास्त्री ब्रिज पर नया प्रयोग किया जा रहा है। यहां सीमेंट बेस पर प्लास्टिक के डिवाइडर लगाए गए हैं। चार महीने पहले यहां लोहे की रेलिंग लगाई गई थी। इस पर नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने आपत्ति जताई थी। उस समय आधे हिस्से पर ही रेलिंग लगाई गई थी। जिसे हटा दिया गया। अब डिवाइडर पर प्लास्टिक और फाइबर की रेलिंग लगाई गई है। यह ब्रिज टू लेन है। यहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है। डिवाइडर बनने से हादसों का खतरा बढ़ सकता है, क्योंकि डिवाइडर का बेस सीमेंट का बना है। इससे पहले ब्रिज पर तीन साल के लिए अस्थाई सीमेंट के डिवाइडर लगाए गए थे। ब्रिज में कई जगह दरारें, छड़ें दिख रही हैं 60 साल से ज्यादा पुराने शास्त्री ब्रिज के कई हिस्से कमजोर हो चुके हैं। छह महीने पहले फुटपाथ और सड़क के बीच गैप आ गया था। अफसरों ने जांच की तो चूहों को जिम्मेदार ठहराया। तब कहा गया था कि चूहों ने छेद कर दिए हैं। इसी वजह से यह खाई पैदा हुई है। गांधी हॉल गार्डन क्षेत्र में बने पुल का प्लास्टर उखड़ चुका है और छड़ें भी दिखाई दे रही हैं। इसके अलावा पैदल यात्रियों के पुल पर चढ़ने के लिए बनाए गए टावर पांच साल पहले ढह गए। यातायात का दबाव बढ़ने के कारण इस पुल के पास एक और पुल बनाने की योजना बनाई जा रही है, लेकिन अभी इस पर अमल नहीं हो पा रहा है। पुराने पुल की ऊंचाई कम होने के कारण ट्रेनों को भी इससे गुजरने में दिक्कत आ रही है।

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