स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही और निजी अस्पतालों की मनमानी का एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें ग्राम शिवसागर निवासी तुलसी दास कोल पिता भूरे लाल, एक आदिवासी मरीज की इलाज के दौरान मौत हो गई, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने शव देने से इनकार कर दिया। परिवार के सदस्यों को अस्पताल द्वारा यह कहकर शव नहीं दिया गया कि उनका भुगतान बाकी है।
सूत्रों के अनुसार, तुलसी दास कोल का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा था, जहां उनकी तबियत अचानक बिगड़ गई और इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। लेकिन जब परिजनों ने शव लेने अस्पताल पहुंचे, तो अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि जब तक बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जाता, शव नहीं दिया जाएगा।
यह सुनकर परिजनों में हड़कंप मच गया और उनका गुस्सा फूट पड़ा। पीड़ित परिवार के सदस्य अस्पताल के सामने धरने पर बैठ गए और मामले का विरोध किया। इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं, और यह मामला निजी अस्पतालों की मनमानी और लापरवाही की ओर इशारा कर रहा है।
घटना की जानकारी मिलने के बाद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने मामले का संज्ञान लिया और अस्पताल प्रबंधन से जवाब तलब किया। पुलिस ने भी मामले की जांच शुरू कर दी है और अस्पताल प्रबंधन से उचित कार्रवाई की मांग की है।
पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि अस्पताल ने समान्य मानवीय संवेदना को दरकिनार कर दिया और गैरकानूनी तरीके से शव को रोकने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि ऐसे कृत्य से केवल अस्पताल की मानवाधिकार उल्लंघन की गंभीरता सामने आई है।
स्थानीय निवासियों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने भी अस्पताल की कड़ी निंदा की है और स्वास्थ्य विभाग से ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई की मांग की है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि इस घटना की जांच की जाएगी और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे।

