बिना बसाहट वाले रूट पर मेट्रो संचालन बना घाटे का सौदा, यात्रियों की कमी से घटे फेरे

शहर में मेट्रो सेवा को बेहतर यातायात व्यवस्था और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा माना गया था, लेकिन अब यह सेवा कुछ चुनिंदा रूटों पर यात्रियों की भारी कमी के चलते घाटे का सौदा साबित हो रही है। खासकर बगैर घनी बसाहट वाले रूट्स पर मेट्रो ट्रेनें लगभग खाली दौड़ रही हैं, जिससे यात्रा फेरे भी घटा दिए गए हैं।
यात्रियों की संख्या घटी, संचालन में आ रही परेशानी
मेट्रो प्रशासन के अनुसार, जिन रूटों पर प्राकृतिक आवासीय घनत्व कम है या जहां अभी शहरी विस्तार नहीं हुआ है, वहां यात्रियों की संख्या बहुत कम दर्ज हो रही है। उदाहरण के तौर पर मुंशीपुलिया से ट्रांसपोर्ट नगर और उससे आगे बढ़ाए गए कुछ स्टेशनों पर प्रति कोच यात्रियों की औसत संख्या लगातार गिरती जा रही है।
एक तिहाई ट्रेनें रह गईं आधे खाली
सुबह और शाम की पीक आवर्स को छोड़ दें तो मेट्रो की कई ट्रेनों में 30-40 प्रतिशत सीटें खाली चल रही हैं। यही वजह है कि मेट्रो प्रशासन ने कम भीड़ वाले रूट्स पर फेरे कम कर दिए हैं। अब प्रत्येक ट्रेन का औसत संचालन पहले की तुलना में 20-25% तक घटा दिया गया है।
मेट्रो संचालन में बढ़ रही लागत, घट रहा लाभ
कम यात्री संख्या के कारण मेट्रो ऑपरेशंस का लागत-लाभ संतुलन बिगड़ रहा है। बिजली, रखरखाव, स्टाफ वेतन और अन्य परिचालन खर्चों को देखते हुए मेट्रो को इन रूट्स पर भारी घाटा उठाना पड़ रहा है।
विशेषज्ञों की राय: रूट चयन में जल्दबाज़ी पड़ी भारी
शहरी यातायात और इंफ्रास्ट्रक्चर विशेषज्ञों का मानना है कि मेट्रो रूट के निर्धारण में जनसंख्या घनत्व, वाणिज्यिक गतिविधियां और यात्रियों की संभावित संख्या जैसे मानकों की उपेक्षा की गई। मेट्रो को कुछ ऐसे इलाकों तक पहुंचा दिया गया, जहां अब भी बसाहट सीमित है और दैनिक यात्रा की मांग बहुत कम है।
समाधान क्या है?
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फीडर बस सेवाएं और ई-रिक्शा की बेहतर उपलब्धता, ताकि लोग मेट्रो स्टेशनों तक आसानी से पहुंच सकें।
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किराया दरों में लचीलापन, ताकि कम दूरी की यात्रा करने वाले भी मेट्रो को प्राथमिकता दें।
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प्रमोशनल कैंपेन और ऑफिस-स्कूल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना।
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जनसंख्या वृद्धि के संभावित क्षेत्रों में मेट्रो विस्तार को प्राथमिकता देना।