मानसून की सुस्ती से किसानों को मिली राहत, खेतों में लौटे किसान, बिचड़ा डालकर बारिश का इंतजार
झारखंड में पिछले कुछ दिनों से मानसून की सक्रियता में कमी देखी जा रही है, जिससे लगातार हो रही तेज बारिश पर थोड़ी विराम लगी है। यह स्थिति आमजनों के साथ-साथ किसानों के लिए भी राहत लेकर आई है। जहां आम लोग बारिश के कारण होने वाली दिक्कतों से कुछ समय के लिए मुक्त हुए हैं, वहीं किसान अब अपने खेतों की ओर लौटने लगे हैं और कृषि कार्यों में जुट गए हैं।
सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला, खूंटी जैसे कृषि प्रधान जिलों में अब खेतों में हलचल बढ़ गई है। किसान धान की खेती के लिए बिचड़ा (धान की नर्सरी) डालने का कार्य प्रारंभ कर चुके हैं और अब हल्की-फुहारों का इंतजार कर रहे हैं, ताकि रोपनी का कार्य ठीक ढंग से शुरू किया जा सके।
किसानों का कहना है कि तेज बारिश और जलभराव के कारण पिछले सप्ताह खेतों में घुसना मुश्किल हो गया था, लेकिन अब मौसम खुलने से खेतों में काम करना संभव हो गया है। खेतों की तैयारी, मेड़ों की मरम्मत और बिचड़े की बुआई जैसी प्राथमिक गतिविधियों में तेजी आ गई है।
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून की मौजूदा सुस्ती कुछ दिनों तक रह सकती है, लेकिन जुलाई के अंत तक एक बार फिर बारिश की गति बढ़ने की संभावना है। ऐसे में किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे मौसम के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए अपने कृषि कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से करें।
कृषि विभाग भी किसानों को लगातार सलाह दे रहा है कि वे खेतों में जल प्रबंधन पर ध्यान दें और जल संरक्षण के उपायों को अपनाएं, ताकि आगामी दिनों में अगर बारिश की स्थिति असंतुलित होती है, तो भी फसल को नुकसान न हो।
उल्लेखनीय है कि झारखंड की अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम योगदान है और राज्य की लगभग 60% आबादी खेती पर निर्भर है। धान यहां की प्रमुख खरीफ फसल है और मानसून की स्थिति पर इसकी उपज काफी हद तक निर्भर करती है।
फिलहाल खेतों में हरियाली लौटने लगी है और किसान आशान्वित हैं कि यदि अगले कुछ दिनों में मानसूनी फुहारें समय पर आईं, तो धान की खेती सुचारु रूप से आगे बढ़ेगी। ग्रामीण इलाकों में खेती की तैयारी और खेतों में किसानों की बढ़ती चहल-पहल एक बार फिर ग्रामीण जीवन में उम्मीदों की फसल उगा रही है।

