ई-रिक्शा: स्व-रोजगार का साधन या राजधानी की यातायात व्यवस्था के लिए नई चुनौती

राजधानी में सुगम लोक परिवहन और स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई ई-रिक्शा सेवा अब शहरी यातायात व्यवस्था के लिए एक नई परेशानी बनती जा रही है। जिस योजना को कभी गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का जरिया माना गया था, वही अब शहर की सड़कों पर जाम और अव्यवस्था का प्रमुख कारण बन गई है।
जाम का स्थायी कारण बनते जा रहे ई-रिक्शा
राजधानी की सड़कों पर ई-रिक्शा की संख्या लगातार बढ़ रही है। इनकी सुस्त रफ्तार और अनियंत्रित संचालन व्यवस्था आए दिन यातायात जाम की स्थिति पैदा कर रही है। प्रमुख चौराहों, बाज़ारों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में ई-रिक्शा अक्सर बेतरतीब खड़े नजर आते हैं, जिससे ट्रैफिक की गति बाधित होती है।
इस जाम का सबसे बड़ा नुकसान आम नागरिकों को उठाना पड़ता है। लोग समय पर ऑफिस, स्कूल या अस्पताल नहीं पहुंच पाते। आपातकालीन सेवाएं जैसे एंबुलेंस और वीआईपी मूवमेंट भी इस भीड़-भाड़ में बुरी तरह फंस जाते हैं, जो किसी भी बड़े शहर की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।
नियमों की अनदेखी और प्रशासन की ढिलाई
ई-रिक्शा के संचालन को लेकर प्रशासन द्वारा बनाए गए नियमों का पालन न के बराबर होता है। अधिकतर ड्राइवर बिना लाइसेंस या प्रशिक्षित हुए सड़कों पर वाहन चला रहे हैं। निर्धारित मार्गों और स्टॉपिंग प्वाइंट की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है।
इसके अलावा, कई ई-रिक्शा ड्राइवर क्षमता से अधिक सवारी बिठाकर न सिर्फ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहे हैं। यातायात पुलिस और नगर निगम की संयुक्त कार्रवाई के अभाव में स्थिति और बिगड़ती जा रही है।
स्व-रोजगार बनाम सार्वजनिक असुविधा
यह undeniable है कि ई-रिक्शा ने हजारों लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा है और उनके जीवन में आर्थिक स्थिरता लाई है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि अगर इस परिवहन प्रणाली को सुनियोजित और नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह सार्वजनिक जीवन में असुविधा और अव्यवस्था का बड़ा कारण बन सकता है।
समाधान की ओर कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि ई-रिक्शा के संचालन को डिजिटल निगरानी प्रणाली, जोनल परमिट, और GPS ट्रैकिंग जैसे उपायों के माध्यम से नियमित किया जा सकता है। साथ ही, ड्राइवरों को प्रशिक्षण देकर उन्हें ट्रैफिक नियमों की जानकारी देना भी जरूरी है।