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भारत के लोकतंत्र का काला दिन, जब आपातकाल ने लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला

भारत के लोकतंत्र का काला दिन, जब आपातकाल ने लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला

भारत के लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून का दिन एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। यह वह दिन था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक स्थिति को गड़बड़ होने का हवाला देते हुए आपातकाल (Emergency) लागू कर दिया था। 25 जून 1975 को लागू हुआ यह आपातकाल भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक काला समय साबित हुआ, जो आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। आज 50 वर्ष पूर्ण होने पर भी आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों और उस समय की लोकतांत्रिक हनन की घटनाओं को याद किया जाता है।

आपातकाल का ऐलान

आपातकाल का ऐलान 25 जून 1975 को किया गया था, जब इंदिरा गांधी ने आरोप लगाया कि देश की आंतरिक स्थिति बेहद गंभीर हो गई है, और देश में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके बाद, इंदिरा गांधी ने संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल लागू कर दिया, जिसके बाद सरकार ने अपने अधिकारों का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया।

21 महीनों का अंधकार

यह आपातकाल करीब 21 महीने तक चला, यानी 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक। इस दौरान देश में लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ, और लोगों को बिना किसी स्पष्ट आरोप के गिरफ्तार किया गया। सैकड़ों विपक्षी नेता, समाजसेवी, पत्रकार, और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता जेलों में बंद कर दिए गए। मीडिया पर सेंसरशिप लागू की गई, और जनसंवाद के हर रूप को दबाने की कोशिश की गई।

शासन और तंत्र का दमनात्मक चेहरा

आपातकाल के दौरान लोगों ने शासन का क्रूर चेहरा देखा। सरकार ने अपनी शक्तियों का अत्यधिक दुरुपयोग किया, और सत्ता के केंद्र में इंदिरा गांधी और उनके करीबी लोग आ गए थे। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई, और तंत्र सर्वोपरि हो गया। जनता की आवाज दबाई गई, और जो भी सरकार के खिलाफ बोलने की कोशिश करता, उसे दमन का सामना करना पड़ता था। राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया, और अधिकांश विपक्षी नेताओं को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार किया गया।

लोगों का उत्पीड़न

आपातकाल के दौरान, जनता का उत्पीड़न एक आम बात बन गई थी। ना सिर्फ राजनेताओं, बल्कि आम नागरिकों को भी उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया। इंदिरा गांधी सरकार ने नसबंदी के अभियान को भी बढ़ावा दिया, जिसके तहत लाखों लोगों को जबरन नसबंदी करवाई गई। यह अभियान काफी विवादास्पद था, और इसके दौरान कई लोगों की जिंदगी पर गहरा असर पड़ा।

आपातकाल के प्रभाव

आपातकाल ने भारतीय राजनीति और समाज पर लंबे समय तक प्रभाव डाला। इसके बाद, इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती देने वाले आंदोलनों की शुरुआत हुई, और अंततः 1977 में आम चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र की जीत साबित हुआ, जहां जनता ने आपातकाल के दौरान अपने अधिकारों की हनन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोकतंत्र की बहाली की।

आज भी याद किया जाता है आपातकाल

आज, 50 साल बाद भी 25 जून का दिन भारतीय लोकतंत्र में एक गहरे इतिहास के रूप में याद किया जाता है। आपातकाल ने यह साबित किया कि लोकतंत्र में सत्ता का दुरुपयोग और निरंकुश शासन को किसी भी हालत में सहन नहीं किया जा सकता। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों को संरक्षित रखने के लिए निरंतर संघर्ष और जागरूकता की आवश्यकता है।

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