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भोपाल सेंट्रल जेल में नेल्सन मंडेला दिवस की पूर्व संध्या पर महिला कैदियों के लिए परिवर्तनकारी कार्यशाला, मीडिया और व्यक्तित्व विकास पर विशेष सत्र आयोजित

भोपाल सेंट्रल जेल में नेल्सन मंडेला दिवस की पूर्व संध्या पर महिला कैदियों के लिए परिवर्तनकारी कार्यशाला, मीडिया और व्यक्तित्व विकास पर विशेष सत्र आयोजित

नेल्सन मंडेला दिवस की पूर्व संध्या पर भोपाल सेंट्रल जेल में एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल देखने को मिली। मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग और तिनका तिनका फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से मंगलवार को एक दिवसीय विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य महिला बंदियों के आत्मविकास और सामाजिक पुनर्वास की दिशा में कदम बढ़ाना था।

कार्यशाला में कुल 115 महिला कैदियों ने भाग लिया, जिनमें से 50 बंदियों को मीडिया, संप्रेषण (कम्युनिकेशन) और व्यक्तित्व विकास जैसे विषयों पर आधारित विशेष सत्र के लिए चुना गया। इन सत्रों का संचालन तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक और चर्चित जेल सुधारक लेखिका डॉ. वर्तिका नंदा ने किया। डॉ. नंदा ने न सिर्फ मीडिया और संवाद की महत्ता को रेखांकित किया बल्कि बंदियों को यह भी समझाया कि जीवन में परिवर्तन संभव है, बशर्ते भीतर से एक नई शुरुआत की जाए।

मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने इस मौके पर कहा, “जेल के भीतर रह रही महिलाएं समाज से अलग जरूर हैं, परंतु वे समाज की जिम्मेदारी भी हैं। हमारा प्रयास है कि उन्हें पुनः समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। ऐसे कार्यक्रमों से उनमें आत्मविश्वास लौटता है और वे खुद को नए नजरिए से देखना शुरू करती हैं।”

कार्यशाला के दौरान महिला कैदियों ने कविता पाठ, नाटक और संवाद प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने भीतर के भावों को अभिव्यक्त किया। इनमें से कई बंदियों ने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि इस तरह की पहल उन्हें अपनी पहचान वापस पाने की उम्मीद देती है।

डॉ. वर्तिका नंदा ने कहा, “यह केवल एक कार्यशाला नहीं, बल्कि एक नई सोच और आत्मपरिवर्तन की शुरुआत है। बंदी महिलाएं भी समाज का हिस्सा हैं, और उन्हें सुधार व पुनर्वास का अवसर मिलना चाहिए।”

तिनका तिनका फाउंडेशन लंबे समय से भारत की जेलों में कैदियों के पुनर्वास और आत्म-सशक्तिकरण के लिए काम करता रहा है। डॉ. नंदा की अगुवाई में अब तक कई राज्यों की जेलों में समान तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें कैदियों को साहित्य, पत्रकारिता और आत्म-चिंतन जैसे विषयों से जोड़ा गया है।

भोपाल सेंट्रल जेल में आयोजित यह कार्यशाला न केवल बंदी महिलाओं के जीवन में उम्मीद की किरण लेकर आई, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि यदि सही दिशा और अवसर मिले, तो हर व्यक्ति अपने जीवन में बदलाव ला सकता है।

यह आयोजन एक उदाहरण है कि जेल केवल सजा का स्थान नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्निर्माण की भी जगह हो सकती है।

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