BAP सांसद राजकुमार रोत की ‘भील प्रदेश’ की मांग से मचा सियासी भूचाल, 4 राज्यों को शामिल करने का दावा
भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने एक विवादित सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए मध्य प्रदेश समेत देश के चार राज्यों की राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर दो नक्शे साझा किए हैं, जिनमें "भील प्रदेश" नाम से एक अलग राज्य की मांग की गई है।
इन नक्शों में मध्य प्रदेश के कुछ जिलों के साथ-साथ राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को मिलाकर एक नया भील राज्य बनाए जाने की कल्पना की गई है।
क्या है ‘भील प्रदेश’ का प्रस्ताव?
राजकुमार रोत द्वारा साझा किए गए नक्शे में दावा किया गया है कि भील जनजातियों की सांस्कृतिक और सामाजिक अस्मिता के संरक्षण तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सशक्त बनाने के लिए एक अलग राज्य की आवश्यकता है।
उनके मुताबिक, ये क्षेत्र भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और यहां पर भील जनजाति की संख्या, संस्कृति और संघर्ष की साझा विरासत है, जिसे मौजूदा राज्यों में समुचित पहचान नहीं मिल पा रही है।
किन क्षेत्रों को किया गया शामिल?
पोस्ट में दर्शाए गए नक्शों के अनुसार, जिन जिलों को ‘भील प्रदेश’ में शामिल करने की बात कही गई है, उनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
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मध्य प्रदेश: अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, धार, खरगोन जैसे आदिवासी बहुल जिले
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राजस्थान: बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़
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गुजरात: पंचमहल, दाहोद, छोटा उदेपुर
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महाराष्ट्र: नंदुरबार, धुले आदि जिले
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज
इस पोस्ट के सामने आते ही चारों राज्यों की राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
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मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने इसे "देशविरोधी और विभाजनकारी राजनीति" बताया है।
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कुछ भाजपा नेताओं ने इसे "संविधान के खिलाफ" बताते हुए सांसद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
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वहीं, आदिवासी संगठनों और कई युवा नेताओं ने इस मुद्दे को आदिवासी अधिकारों की बहस से जोड़कर समर्थन भी दिया है।
खुद क्या बोले राजकुमार रोत?
राजकुमार रोत ने अपने बचाव में कहा,
“यह कोई अलगाववाद नहीं, बल्कि भील समुदाय के अधिकारों और अस्मिता के लिए एक शांतिपूर्ण सांस्कृतिक आंदोलन है। हम सिर्फ पहचान और हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं, बगावत की नहीं।”
केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की नजर
सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने इस विवादास्पद मांग पर रिपोर्ट तलब की है और कानूनी पहलुओं की जांच की जा रही है। चुनावी राज्यों में इस मुद्दे का असर पड़ सकता है, खासकर जहां आदिवासी आबादी निर्णायक भूमिका में है।

