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1971 युद्ध के 54 साल बाद मिला सम्मान, भिंड के 12 शहीदों को बांग्लादेश सरकार की ओर से श्रद्धांजलि, परिजनों की आंखें हुईं नम

1971 युद्ध के 54 साल बाद मिला सम्मान, भिंड के 12 शहीदों को बांग्लादेश सरकार की ओर से श्रद्धांजलि, परिजनों की आंखें हुईं नम

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारतीय सैनिकों को आखिरकार 54 वर्षों बाद एक ऐतिहासिक सम्मान मिला है। यह सम्मान बांग्लादेश सरकार की ओर से उन शहीदों को समर्पित है, जिनके बलिदान से बांग्लादेश का स्वतंत्र अस्तित्व संभव हो सका।
इस कड़ी में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के 12 वीर जवानों के परिवारों को जब भारतीय सेना के जवान सम्मान पत्र और शील्ड सौंपने पहुंचे, तो घर-घर में भावुक माहौल बन गया।

शहीदों के घर पहुंची भारतीय सेना

सम्मान पत्र और स्मृति-चिन्ह लेकर जब सेना के अधिकारी भिंड जिले के अलग-अलग गांवों में शहीदों के घर पहुंचे, तो परिजनों की आंखें भर आईं। वर्षों से जिनके घरों में वीरगाथाएं तो थीं, लेकिन कोई आधिकारिक सम्मान नहीं था, वहां पहली बार लगा जैसे देश ने उनके बेटे के बलिदान को याद किया है

एक शहीद की मां ने भावुक होकर कहा, "ऐसा लगा मानो बेटा खुद चिट्ठी लेकर आया हो।" किसी बहन ने कहा, "आज वो जिंदा होता तो देखता कि उसकी कुर्बानी को दुनिया ने कैसे सराहा है।" यह पल न केवल परिवारों के लिए गर्व का था, बल्कि पूरे गांव और जिले के लिए भी गौरवपूर्ण क्षण था।

बांग्लादेश सरकार की ऐतिहासिक पहल

1971 के युद्ध में भारत के हजारों जवानों ने हिस्सा लिया था, जिनमें सैकड़ों ने अपने प्राण न्योछावर किए थे। यह युद्ध बांग्लादेश की स्वतंत्रता का आधार बना। इन सैनिकों की स्मृति में बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में विशेष श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया, और भारत सरकार के माध्यम से शहीद परिवारों को सम्मान पत्र और शील्ड भेजी

भिंड के वीरों का गौरव

भिंड जिला ऐतिहासिक रूप से वीरता और बलिदान की धरती रहा है। 1971 के युद्ध में यहां के 12 सैनिक शहीद हुए थे, जिनकी यादें आज भी परिजनों और गांववालों के दिलों में ताजा हैं। उस समय सूचना और संचार के सीमित साधनों के कारण परिजन अपने वीरों को सिर्फ श्रद्धा और तस्वीरों के माध्यम से याद कर पाते थे। अब जाकर उन्हें सरकारी स्तर पर पहली बार वह मान्यता और सम्मान मिला, जिसके वे वर्षों से हकदार थे।

सैनिकों की स्मृति को सहेजने की मांग

सम्मान समारोह के बाद कई परिजनों ने यह मांग भी रखी कि इन शहीदों की याद में स्थानीय स्तर पर स्मारक या युद्ध संग्रहालय की स्थापना की जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी वीरता से प्रेरणा ले सकें

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