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आईएएस नियाज़ खान का अरब संस्कृति पर विवादित बयान, सोशल मीडिया पर मचा बवाल

आईएएस नियाज़ खान का अरब संस्कृति पर विवादित बयान, सोशल मीडिया पर मचा बवाल

मध्य प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नियाज खान एक बार फिर अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर अरब संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को लेकर तीखे शब्दों में चिंता जाहिर की है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस छिड़ गई है।

"अरब संस्कृति से भारत को बचाना होगा" — नियाज खान

नियाज खान ने एक के बाद एक कई पोस्ट करते हुए लिखा कि "भारत में अरब संस्कृति का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय है और इसे रोका जाना चाहिए।" उन्होंने दावा किया कि इस्लाम के प्रचार-प्रसार के साथ अरब सांस्कृतिक प्रतीकों ने भारतीय समाज में गहराई से पैठ बना ली है, जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों के विपरीत है।

उन्होंने लिखा:

“इस्लाम को अरब के लोगों ने फैलाया और नतीजा यह हुआ कि भारत के तीन टुकड़े हो गए। अब भविष्य में भारत को अरब संस्कृति से बचाना होगा।”

पहनावे और पहचान को बताया खतरा

नियाज खान ने अरब संस्कृति से जुड़ी वेशभूषा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने लिखा:

"कई जगहों पर आज भी अरब जैसा पहनावा—सिर पर रिंग वाला कपड़ा और लंबा लिबास—देखने को मिलता है। यह सब भारत की सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है।"

उनके अनुसार, "भारतीय मुसलमानों को अरब के दिखावे से दूर रहना चाहिए और भारतीय परंपरा के अनुसार जीवन जीना चाहिए।"

सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया

नियाज खान के इस बयान पर सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई लोगों ने उन्हें धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला और विभाजनकारी करार दिया, वहीं कुछ लोगों ने उनकी 'साफगोई' और 'सांस्कृतिक संरक्षण' के प्रयास के रूप में समर्थन किया।

प्रशासन और सरकार की चुप्पी

फिलहाल राज्य सरकार या प्रशासन की ओर से इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। नियाज खान पहले भी अपने बेबाक बयानों और विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर चर्चा में रह चुके हैं। उन्होंने अतीत में बॉलीवुड, सांप्रदायिकता और प्रशासनिक मुद्दों पर भी विवादित बयान दिए हैं।

पूर्व में भी विवादों से रहा है नाता

गौरतलब है कि नियाज खान इससे पहले भी 'कश्मीर फाइल्स' पर किताब लिखने की बात कह चुके हैं और वे मुस्लिम समाज में सुधार को लेकर मुखर विचार रखने के लिए जाने जाते हैं। उनके बयानों को लेकर अक्सर प्रशासनिक दायित्व और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच की रेखा पर बहस होती रही है।

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