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कर्नाटक में फिर से होगी जातिगत जनगणना, सिद्धारमैया बोले, ये पार्टी हाईकमान का फैसला, राज्य सरकार का नहीं

कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण (सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण) को लेकर कांग्रेस ने एक बड़ा यू-टर्न लिया है, जिसने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। लंबे समय से इस सर्वेक्षण को लागू कराने की कोशिश कर रही कांग्रेस सरकार...
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कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण (सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण) को लेकर कांग्रेस ने एक बड़ा यू-टर्न लिया है, जिसने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। लंबे समय से इस सर्वेक्षण को लागू कराने की कोशिश कर रही कांग्रेस सरकार ने अचानक 2015 के सर्वेक्षण को अब वैध नहीं मानने का फैसला किया और नया सर्वेक्षण कराने की घोषणा की। इस फैसले के पीछे पार्टी हाईकमान की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर उठाई गई आपत्तियां मुख्य कारण रही हैं। सिद्धारमैया ने इस फैसले के पीछे ‘कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1995’ की धारा 11(1) को आधार बताते हुए कहा कि हर दस साल में नया सर्वेक्षण होना जरूरी है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय उनकी सरकार का नहीं, बल्कि पार्टी हाईकमान का निर्देश है। इससे साफ होता है कि यह यू-टर्न उनकी इच्छा के विरुद्ध था और वे इसके लिए खुद को जिम्मेदार नहीं मानना चाहते।

हाईकमान का दबाव और सिद्धारमैया की लाचारी

इस फैसले के बाद सिद्धारमैया ने कहा, "यह मेरी सरकार या कैबिनेट का फैसला नहीं है, बल्कि पार्टी हाईकमान का निर्देश है।" यह बयान उनके राजनीतिक संकट को दर्शाता है, जहां वे पार्टी के निर्णय के दबाव में हैं और खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि पहले भी उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को दबाया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर लागू करने की कोशिश की।

सर्वेक्षण रिपोर्ट में विवाद और जातीय तनाव

जातिगत सर्वेक्षण की रिपोर्ट लीक होने के बाद इसमें कई विवादास्पद सिफारिशें सामने आईं, जो विभिन्न जातीय समूहों के बीच असंतोष का कारण बनीं। खासकर कुरुबा जाति को ओबीसी (2ए श्रेणी) से हटा कर श्रेणी-1 में शामिल करने की सिफारिश ने वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों सहित कई प्रभावशाली समूहों को नाराज कर दिया। इसके साथ ही कुछ अन्य जातियों को ओबीसी कोटे से बाहर करने की बात भी रिपोर्ट में आई, जिससे व्यापक विरोध हुआ। इस कारण पार्टी हाईकमान ने सर्वेक्षण पर पुनर्विचार करने को कहा और इस फैसले ने सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ा दीं, क्योंकि अब उन्हें अपने समर्थक वर्गों को मनाने के साथ-साथ पार्टी के निर्देशों का पालन भी करना है।

विपक्ष का हमला और कांग्रेस की दोहरी नीति

विपक्षी दल भाजपा ने इस मसले पर कांग्रेस की दोहरी राजनीति को निशाना बनाया है। भाजपा के आर. अशोक ने कहा कि जब पार्टी हाईकमान ने दबाव बनाया तो कांग्रेस ने नया सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, जिससे साफ है कि कांग्रेस को जनता और मठ प्रमुखों पर भरोसा नहीं। उन्होंने सवाल उठाया कि 2015 के सर्वेक्षण पर जो 167 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, क्या वे अब बर्बाद हो गए? साथ ही, बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में हालिया भगदड़ में 11 लोगों की मौत के बाद विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार जातिगत सर्वे की बहाने असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।

सिद्धारमैया के राजनीतिक दांव-पेंच और असहज स्थिति

सर्वेक्षण विवाद ने सिद्धारमैया को राजनीतिक संकट में डाल दिया है। वे न तो पार्टी हाईकमान का खुलकर विरोध कर सकते हैं और न ही उन सामाजिक समूहों को पूरी तरह संतुष्ट कर पा रहे हैं जिनसे उन्हें समर्थन की उम्मीद थी। इस स्थिति में वह फंसे हुए हैं और उनकी राजनीतिक छवि प्रभावित हो रही है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह यू-टर्न सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस को डर है कि जातिगत आधार पर आरक्षण में बड़े बदलाव से लोकसभा चुनाव में बहुसंख्यक समुदाय नाराज हो सकता है। इसलिए पार्टी ने संतुलन बनाते हुए फिलहाल नया सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है।

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