झारखंड हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, आउटसोर्स कर्मियों को भी मिलेगा नियमित कर्मियों के बराबर न्यूनतम वेतन

झारखंड हाई कोर्ट ने आउटसोर्सिंग के जरिए कार्यरत कर्मचारियों के हक में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जस्टिस दीपक रोशन की एकल पीठ ने मंगलवार को हुई सुनवाई के बाद निर्देश दिया कि आउटसोर्स कर्मियों को भी नियमित कर्मियों की तरह न्यूनतम वेतन दिया जाए। यह आदेश राज्य के विभिन्न विभागों और एजेंसियों में वर्षों से कार्यरत हजारों संविदाकर्मियों को राहत देने वाला माना जा रहा है।
क्या थी याचिका?
यह याचिका आउटसोर्सिंग एजेंसियों के तहत कार्यरत कर्मियों की ओर से दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि उन्हें निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जा रहा है, जबकि वे नियमित कर्मचारियों के बराबर कार्य कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष यह दलील रखी कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
कोर्ट का निर्देश
जस्टिस दीपक रोशन ने अपने आदेश में कहा—
"जो कर्मचारी आउटसोर्सिंग के माध्यम से स्थायी प्रकृति का काम कर रहे हैं, उन्हें उनके कार्य के अनुरूप न्यूनतम वेतन देना राज्य और एजेंसियों की जिम्मेदारी है। उन्हें श्रम कानूनों के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आउटसोर्सिंग एजेंसियां यह वेतन देने में असमर्थ हैं, तो संबंधित सरकारी विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भुगतान समय पर और नियम के तहत हो।
कर्मियों को मिली राहत
इस फैसले से झारखंड में कार्यरत हजारों आउटसोर्स कर्मचारी, जैसे कि डाटा एंट्री ऑपरेटर, हेल्पर, सिक्योरिटी गार्ड, अस्पतालों में कार्यरत कर्मी, क्लीनर, और अन्य तकनीकी सहायक, जिन्हें वर्षों से बहुत ही कम वेतन में काम कराया जा रहा था, उन्हें अब न्यूनतम वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकार और एजेंसियों पर दबाव
इस फैसले के बाद राज्य सरकार और विभिन्न आउटसोर्सिंग एजेंसियों पर अब आउटसोर्स कर्मियों के हित में तत्काल कदम उठाने का दबाव बढ़ गया है। यदि निर्देशों का अनुपालन नहीं हुआ, तो यह अवमानना की कार्रवाई को भी जन्म दे सकता है।