झारखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, आउटसोर्स कर्मियों को मिलेगा नियमित कर्मियों के बराबर न्यूनतम वेतन

आउटसोर्सिंग के जरिए काम कर रहे कर्मचारियों के लिए राहत भरी खबर है। झारखंड हाई कोर्ट ने न्यूनतम वेतन को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जस्टिस दीपक रोशन की अदालत में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि आउटसोर्स कर्मियों को भी नियमित कर्मियों के बराबर न्यूनतम वेतन दिया जाए।
क्या है मामला?
राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, कार्यालयों और संस्थानों में आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को बहुत कम वेतन मिल रहा था। इन्हीं कर्मचारियों की ओर से अदालत में न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत समान वेतन की मांग करते हुए याचिका दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे भी वही काम कर रहे हैं जो नियमित कर्मचारी करते हैं, लेकिन उन्हें न्यूनतम मजदूरी के नाम पर बहुत ही कम भुगतान किया जा रहा है, जो अन्यायपूर्ण है।
कोर्ट का सख्त रुख
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और संबंधित विभागों से पूछा कि यदि आउटसोर्स कर्मी वही कार्य कर रहे हैं जो नियमित कर्मचारी करते हैं, तो वेतन में भेदभाव क्यों किया जा रहा है?
न्यायमूर्ति दीपक रोशन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,
"समान कार्य के लिए समान वेतन देना संविधान और न्याय का मूल सिद्धांत है। किसी भी श्रमिक को उसकी मेहनत के अनुसार उचित मजदूरी मिलनी चाहिए, चाहे वह नियमित हो या आउटसोर्स।"
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:
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आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियोजित कर्मियों को
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संबंधित कार्य के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन दर पर
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नियमित कर्मचारियों के समकक्ष वेतन मिलना चाहिए।
कोर्ट ने संबंधित विभागों और एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे इस आदेश का सख्ती से पालन करें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी आउटसोर्स कर्मचारी का शोषण न हो।
इसका असर
झारखंड में वर्तमान में हजारों की संख्या में आउटसोर्सिंग कर्मी विभिन्न सरकारी विभागों, अस्पतालों, निगमों, स्कूलों और परियोजनाओं में कार्यरत हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले से इन कर्मियों को वित्तीय और सामाजिक न्याय मिलेगा।