शिबू सोरेन को आंदोलनकारी घोषित करने के पीछे ऐतिहासिक योगदान, आयोग ने बताए कारण

झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन को आंदोलनकारी घोषित किए जाने के पीछे के ऐतिहासिक और राजनीतिक कारणों का विवरण हाल ही में आयोग द्वारा प्रस्तुत किया गया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि शिबू सोरेन का योगदान न केवल झारखंड राज्य के निर्माण की दिशा में निर्णायक रहा, बल्कि उन्होंने जन आंदोलन को राजनीतिक मंच पर भी मजबूती से नेतृत्व प्रदान किया।
आयोग ने बताया कि छोटानागपुर और संताल परगना क्षेत्र के विधायकों और सांसदों ने राज्यपाल और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर इस क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की थी। यह मांग झारखंड राज्य के लिए लंबे समय से चल रहे संघर्ष का महत्वपूर्ण चरण था, जो अंततः झारखंड की स्थापना की दिशा में पहला ठोस कदम माना जाता है।
1987 की ऐतिहासिक जनसभा
आयोग ने बताया कि 22 सितंबर 1987 को झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया था, जो उस समय झारखंड आंदोलन के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। इस जनसभा में शिबू सोरेन ने झारखंड के लिए निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया और जनभावनाओं को एक नई दिशा दी।
इस आयोजन में हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया और यह स्पष्ट संकेत दिया गया कि झारखंड अब केवल एक मांग नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन बन चुका है। शिबू सोरेन उस समय इस आंदोलन के सबसे प्रमुख और प्रभावशाली चेहरा बनकर उभरे।
समिति और परिषद में सक्रिय भागीदारी
शिबू सोरेन की भूमिका केवल आंदोलनों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने संस्थागत स्तर पर भी झारखंड की आवाज को बुलंद किया। आयोग के अनुसार, वह झारखंड मामलों की समिति के सदस्य थे, जो राज्य के गठन से संबंधित राजनीतिक और प्रशासनिक सुझावों पर काम करती थी।
इसके साथ ही वह झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद (Autonomous Council) के भी सदस्य रहे। इस परिषद के कुल 180 सदस्यों में से 89 ने सक्रिय रूप से सदस्यता ली, जिनमें शिबू सोरेन भी शामिल थे। यह परिषद उस समय झारखंड क्षेत्र को एक स्वायत्त पहचान देने के लिए बनाई गई थी, और शिबू सोरेन की इसमें भूमिका अहम मानी जाती है।
निष्कर्ष
आयोग ने यह साफ किया कि शिबू सोरेन को आंदोलनकारी घोषित करना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उनके दशकों लंबे संघर्ष, जनप्रतिनिधित्व और आंदोलनात्मक योगदान का सम्मान है। उनकी भूमिका ने झारखंड के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन को नई दिशा दी और अंततः राज्य निर्माण की नींव रखी।
संपादकीय टिप्पणी:
शिबू सोरेन का नाम झारखंड के आंदोलन और इतिहास से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। आयोग द्वारा दिए गए तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी के रूप में जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व किया। यह सम्मान उनके योगदान का प्रतीक है।