1000 रुपये किलो वाली 'रुगड़ा' सब्जी की तलाश में जंगल गया युवक, जंगली हाथी ने कुचलकर मार डाला
झारखंड की राजधानी रांची से एक दर्दनाक और हैरान करने वाली घटना सामने आई है। शहर के चान्हो थाना क्षेत्र के रहने वाले युवक गोपेन उरांव की जंगल में दुर्लभ सब्जी 'रुगड़ा' की तलाश में गई जान, उसे जंगली हाथी ने कुचलकर मार डाला। यह घटना न केवल वन्यजीव मानव संघर्ष की भयावहता को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे जीविका के साधनों की तलाश जानलेवा साबित हो सकती है।
क्या है रुगड़ा, जिसकी तलाश में गई जान?
झारखंड के जंगलों में मिलने वाली 'रुगड़ा' (जिसे 'अलमी' भी कहा जाता है) एक दुर्लभ जंगली फफूंद (मशरूम) है, जिसकी मांग बाजार में बहुत अधिक होती है। इसकी कीमत 800 से 1000 रुपये प्रति किलो तक जाती है। आदिवासी समाज के लिए यह रोजगार और स्वाद दोनों का स्रोत है। मानसून के दौरान यह सब्जी जंगलों में उगती है, और स्थानीय लोग इसे इकट्ठा करके बाजार में बेचते हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण हादसा: हाथी ने मार डाला युवक को
गोपेन उरांव भी इसी रुगड़ा की तलाश में जंगल गया था, लेकिन वह यह नहीं जानता था कि जंगल में एक जंगली हाथी भी मौजूद है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, जंगल में अचानक गोपेन का सामना हाथी से हो गया, और हाथी ने पटक-पटक कर उसे कुचल डाला। घटना स्थल पर ही गोपेन की मौत हो गई।
घटना की सूचना मिलते ही ग्रामवासी और वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
गांव में पसरा मातम, परिवार में कोहराम
गोपेन उरांव की मौत की खबर सुनकर गांव में मातम छा गया। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। ग्रामीणों ने वन विभाग से मुआवजे की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार को ऐसे जोखिम भरे काम में लगे लोगों के लिए सुरक्षा उपाय और सहायता योजना लागू करनी चाहिए।
वन विभाग की प्रतिक्रिया
वन विभाग ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा है कि
“यह एक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। मृतक के परिवार को वन्यजीव क्षतिपूर्ति योजना के तहत मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। साथ ही क्षेत्र में हाथियों की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ाई जा रही है।”
मानव-वन्यजीव संघर्ष का बढ़ता खतरा
यह घटना एक बार फिर से इस बात को रेखांकित करती है कि वन्य क्षेत्रों में रह रहे ग्रामीणों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। खासतौर पर मानसून के मौसम में जब लोग रुगड़ा, महुआ, और अन्य वन उत्पादों की तलाश में जंगलों का रुख करते हैं, तो जान जोखिम में पड़ जाती है।

