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आखिर क्यों केजरीवाल की यूपी-बिहार से ज्यादा गुजरात चुनाव में है दिलचस्पी? सामने आई ये चौकाने वाली वजह 

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चुनावी महत्व के लिहाज से बिहार सबसे अहम है। बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और केरल हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल गुजरात के दौरे पर गए हैं। गुजरात में बिहार और बंगाल के बाद 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं।

गुजरात की विसावदर सीट पर उपचुनाव जीतने के बाद, अरविंद केजरीवाल का यह कर्तव्य बनता है कि वे वहाँ के लोगों की समस्याओं को समझें। मुश्किल समय में गुजरात के लोगों के बीच मौजूद रहें। ऐसा करने से लोगों को अरविंद केजरीवाल का समर्थन तो मिलेगा ही, साथ ही आम आदमी पार्टी को भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक मौका भी मिलेगा।

लेकिन जहाँ पहला चुनाव हो रहा है, वहाँ कोई झाँक-झाँक नहीं कर रहा है और गुजरात का दो दिवसीय दौरा तय है। बेशक, अरविंद केजरीवाल को यह अधिकार है कि वे कहाँ राजनीति करें और कहाँ नहीं। जहाँ उन्हें कुछ उम्मीद और प्रभाव हो, वहाँ राजनीति की जा सकती है - लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल को यूपी और बिहार से कोई उम्मीद नहीं है?

अगर अरविंद केजरीवाल को बिहार से कोई उम्मीद नहीं है, तो राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा का क्या मतलब है? आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह के दौरे के बाद, अरविंद केजरीवाल ने भी बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है - लेकिन उसके बाद क्या योजना है?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उत्तर प्रदेश और बिहार की चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है - और अगर ऐसा है, तो आम आदमी पार्टी द्वारा बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का क्या मतलब है?

बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच केजरीवाल का गुजरात दौरा

आम आदमी पार्टी द्वारा गुजरात के मोडासा में किसान-पशुपालक महापंचायत का आयोजन किया गया है। आप नेता अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी महापंचायत में पहुँचे हैं। गुजरात दौरे की पूर्व संध्या पर, अरविंद केजरीवाल ने सोशल साइट X पर लिखा था कि वह गुजरात में अपने दूध के उचित मूल्य की मांग कर रहे किसानों और पशुपालकों का समर्थन करेंगे।

अरविंद केजरीवाल ने लिखा है, गुजरात में दूध का उचित मूल्य मांग रहे किसानों और पशुपालकों के विरोध प्रदर्शन पर भाजपा सरकार ने लाठीचार्ज किया... एक किसान की मौत हो गई... आम आदमी पार्टी के नेता चैतर वसावा को घोर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर गिरफ्तार कर लिया गया... 30 साल राज करने के बाद, आज गुजरात में भाजपा का अहंकार और भ्रष्टाचार चरम पर है।

जब अरविंद केजरीवाल पंजाब में लुधियाना पश्चिम उपचुनाव की तैयारियों में व्यस्त थे, तब आम आदमी पार्टी की अगले दो सालों की चुनावी योजना के बारे में खबरें आईं। कहा गया कि आम आदमी पार्टी अगले दो सालों में देश के सभी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी राज्यों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। एक श्रेणी में वे राज्य शामिल हैं जहाँ अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव प्रचार का नेतृत्व करेंगे, और दूसरी श्रेणी में वे राज्य शामिल हैं जहाँ आम आदमी पार्टी क्षेत्रीय नेताओं के भरोसे चुनाव लड़ेगी - और खास बात यह है कि बिहार को दूसरी श्रेणी में रखा गया है।

यूपी-बिहार की चुनावी राजनीति से परहेज क्यों?

क्या यह अजीब नहीं लगता कि अरविंद केजरीवाल लुधियाना में उपचुनाव की तारीख़ आने से पहले ही धावा बोल रहे हैं? और अकेले नहीं, मनीष सिसोदिया अपने करीबी दोस्तों की पूरी टीम के साथ। यहाँ तक कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी अक्सर लुधियाना के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं - और अरविंद केजरीवाल घर बैठे घोषणा करते हैं कि आम आदमी पार्टी बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

काफ़ी समय पहले, जब अरविंद केजरीवाल पंजाब चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की तैयारियों के बारे में मीडिया को जानकारी दे रहे थे, तब यूपी को लेकर भी एक सवाल उठा था। तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी के लिए कोई बैंडविड्थ नहीं है - और लगता है कि वे आज तक उसी बात पर अड़े हुए हैं। यही बात बिहार चुनाव पर भी लागू होती है।

2022 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के लिए संजय सिंह और अखिलेश यादव के बीच एक बैठक भी हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में अखिलेश यादव के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी, और स्वाति मालीवाल के सवाल पर उनका बचाव किया था। अखिलेश यादव ने 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए प्रचार भी किया था।

अब तक आम आदमी पार्टी दिल्ली के अलावा पंजाब, गुजरात और गोवा में भी सक्रिय दिखी है। अब गोवा पर कम ज़ोर है। दिल्ली से सत्ता गंवाने के बाद पंजाब पर ज़्यादा ज़ोर है, उसके बाद गुजरात पर।

सवाल यह है कि क्या यूपी-बिहार में कांग्रेस कमज़ोर है, इसलिए अरविंद केजरीवाल ने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली? और, क्या इसकी वजह यह भी है कि अरविंद केजरीवाल यूपी-बिहार की जातिगत राजनीति में आम आदमी पार्टी को अनुपयुक्त पाते हैं?

यह बात सच लगती है। अरविंद केजरीवाल वहीं कामयाब होते हैं जहाँ कांग्रेस प्रभावी होती है। यह दिल्ली से लेकर पंजाब और गुजरात तक देखा जा चुका है। दिल्ली के पहले चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को 8 सीटों पर हराया, और फिर उन्हीं आठ विधायकों के समर्थन से पहली बार दिल्ली में सरकार बनाई। यह बात अलग है कि यह सरकार सिर्फ़ 49 दिन ही चली।

पंजाब में पहले तो उसने कांग्रेस को हराकर दूसरे नंबर की कुर्सी हासिल की, और फिर अगले ही प्रयास में सत्ता भी हासिल कर ली। गुजरात में भी आम आदमी पार्टी की जीती हुई 5 सीटें कांग्रेस की थीं। अरविंद केजरीवाल ने 2017 के चुनावों में राहुल गांधी की कांग्रेस को 17 सीटों से आगे नहीं बढ़ने दिया और भाजपा को 100 से भी कम सीटों पर रोक दिया। 

उत्तर: 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 77 विधानसभा सीटें जीती थीं।

पिछली बार पंजाब में कांग्रेस की आंतरिक कलह और भाजपा के कमज़ोर होने के कारण अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनाई थी। आगामी चुनावों में स्थिति बहुत अलग होगी। लुधियाना पश्चिम में जीत से उत्साह बढ़ सकता है, लेकिन सत्ता में वापसी की गारंटी नहीं।

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