Gen Z की जीत बताकर, Rahul Gandhi को दिया जवाब, ABVP की जीत के बाद पहला इंटरव्यू
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने हाल ही में भारत के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनावों में शानदार जीत हासिल की है। सात साल बाद हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (HCU) में और लगातार दूसरी बार दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) में एबीवीपी ने परचम लहराया है। यह जीत न केवल छात्र राजनीति में एबीवीपी के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि देश का युवा, विशेषकर जेन-Z (Generation Z), राष्ट्रवादी विचारधारा और सरकार की नीतियों पर भरोसा बनाए हुए है।
डीयूएसयू (DUSU) और हैदराबाद विश्वविद्यालय में एबीवीपी की जीत की अहमियत
डीयूएसयू चुनावों में, 2.75 लाख पात्र मतदाताओं में से 39.45% ने मतदान किया। मतगणना में, एबीवीपी ने अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव के तीन प्रमुख पदों पर जीत हासिल की। अध्यक्ष पद पर आर्यन मान ने 16,196 वोटों के बड़े अंतर से एनएसयूआई की जोस्लिन नंदिता चौधरी को हराया। यह जीत एबीवीपी के लिए इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि 2024 में एनएसयूआई ने सात साल बाद अध्यक्ष पद जीता था।
इसी तरह, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी एबीवीपी ने सभी छह पदों पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। यह जीत लेफ्ट (एसएफआई, एआईएसए), दलित संगठनों (बीएसएफ) और एनएसयूआई के दबदबे को तोड़ती है। एचसीयू में 81% से अधिक मतदान हुआ, जो छात्रों की राजनीतिक भागीदारी को दर्शाता है।
जीत के पीछे के कारण
1. राष्ट्रवाद और मोदी सरकार की नीतियां: एबीवीपी ने अपने चुनाव प्रचार का केंद्र 'राष्ट्र प्रथम' के नारे को बनाया, जो जेन-Z के बीच लोकप्रिय हो रहा है। राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार की नीतियों ने युवाओं को राष्ट्रवाद से जोड़ा है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस जीत को युवाओं के राष्ट्रवाद का प्रतीक बताया है।
2. जमीनी मुद्दे और सोशल मीडिया का प्रभावी इस्तेमाल: एबीवीपी ने छात्रों के रोजमर्रा के मुद्दों जैसे मेट्रो पास में छूट, फीस वृद्धि का विरोध और कैंपस सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया। इसके साथ ही, संगठन ने इंस्टाग्राम रील्स और X जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का भरपूर इस्तेमाल किया, जिससे वे जेन-Z तक आसानी से पहुंच सके। 'जेन-Z मोदी के साथ' जैसे ट्रेंड्स ने माहौल को उनके पक्ष में करने में अहम भूमिका निभाई।
3. कमजोर विपक्षी अभियान: दूसरी ओर, एनएसयूआई का चुनाव अभियान कमजोर रहा और उनके 'संस्थागत हस्तक्षेप' के आरोपों को कोर्ट ने खारिज कर दिया। राहुल गांधी का 'जेन-Z क्रांति' का नैरेटिव भी अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ सका। हैदराबाद में, रोहित वेमुला मामले और भूमि विवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर एबीवीपी ने शांति और एकता का संदेश दिया, जो लेफ्ट और अन्य संगठनों के विभाजनकारी नैरेटिव के मुकाबले अधिक प्रभावशाली साबित हुआ।
क्या मोदी सरकार पर जेन-Z का भरोसा बरकरार है?
भारत की कुल आबादी का लगभग 20% हिस्सा जेन-Z का है, जो एक बड़ा और प्रभावशाली मतदाता वर्ग है। डीयूएसयू और एचसीयू जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में एबीवीपी की जीत से यह संकेत मिलता है कि इस युवा पीढ़ी का मोदी सरकार पर भरोसा बरकरार है। प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन के अनुसार, 53% जेन-Z भाजपा का समर्थन करता है, जो राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान को महत्व देता है।
मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाएं जेन-Z को रोजगार और तकनीकी अवसर प्रदान कर रही हैं, जिससे वे आर्थिक स्थिरता और डिजिटल प्रगति को प्राथमिकता दे रहे हैं। ये सभी कारक मिलकर यह दर्शाते हैं कि विश्वविद्यालयों की युवा पीढ़ी पारंपरिक छात्र राजनीति की बजाय एक मजबूत राष्ट्रवादी और विकास-केंद्रित दृष्टिकोण का समर्थन कर रही है।

