जगदीप धनखड़, सत्यपाल मलिक और ... वे 3 जाट नेता जिनसे भाजपा की नहीं निभी, जानें कैसे बेआबरू होकर पार्टी से निकले
जगदीप धनखड़ ने जब अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया, तो अटकलें शुरू हो गईं। क्या उन्होंने इस्तीफ़ा दिया है या लिया है? उन्हें स्वास्थ्य कारणों से जाना पड़ा या किसी और वजह से। ये सब बातें हो रही हैं, लेकिन विश्वास की कमी को भी एक वजह माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि कुछ वजहों से सरकार का उन पर भरोसा कम हुआ है। किसान आंदोलन को लेकर दिए गए बयान और न्यायपालिका के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ को भी एक वजह माना जा रहा है। फिर आख़िरकार जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना भी उनके जाने की वजह बना। हालाँकि, ये सब अटकलें ही हैं क्योंकि किसी कारण की पुष्टि नहीं हुई है।
यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि जगदीप धनखड़ एक समय जनता दल में सक्रिय थे और मूलतः समाजवादी विचारधारा के नेता रहे हैं। अब उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया है, लेकिन वे पहले व्यक्ति नहीं हैं जो जनता दल से भाजपा में आए और फिर बेआबरू होकर बाहर आए। चाहे वो पीलीभीत और सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी हों या जम्मू-कश्मीर, मेघालय, गोवा और ओडिशा के राज्यपाल सत्यपाल मलिक। ये सभी नेता कभी जनता दल में थे। मेनका गांधी बहुत पहले भाजपा में शामिल हो चुकी थीं। वे अब भी औपचारिक रूप से भाजपा में हैं, लेकिन किसी पद पर नहीं हैं। सत्यपाल मलिक और जगदीप धनखड़ हाल के वर्षों में भाजपा में आए थे और उन्हें मोदी सरकार में पद और प्रतिष्ठा भी दी गई थी।
विदाई भी नहीं हुई, अचानक इस्तीफ़ों की अटकलों का दौर चला, फिर कुछ समय बाद सरकार का उन पर से भरोसा कम हुआ, तो उन्हें अचानक पद से हटा दिया गया। कहा जा रहा है कि वे रूखे अंदाज़ में इसलिए जा रहे हैं क्योंकि उपराष्ट्रपति रहे जगदीप धनखड़ को विदाई भाषण देने का मौका नहीं मिला। इसके अलावा, सत्यपाल मलिक और सरकार के रिश्ते इतने तल्ख़ हो गए कि पूर्व राज्यपाल लगातार आरोप लगाते रहे। यशवंत सिन्हा भी इन्हीं नेताओं में से एक हैं जो जनता दल से भाजपा में शामिल हुए। वाजपेयी सरकार से लेकर मोदी राज तक उन्हें सम्मान मिला, लेकिन भाजपा की राह से बेआबरू होकर निकले।
नियम-कानून न समझने से बढ़ता टकराव! भाजपा के लोग मानते हैं कि जनता दल से कई बड़े नेताओं का इस तरह बाहर जाना शिष्टाचार की अनदेखी है। भाजपा में आमतौर पर संघ या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से आए लोगों की बहुलता होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे नेता विचारधारा को समझते हैं और किसी तरह की असहमति होने पर चुप रहते हैं या उचित मंच पर ही अपनी बात रखते हैं। लेकिन जनता दल से आए इन नेताओं ने अपनी हठधर्मिता दिखाई और अंततः टकराव की स्थिति पैदा हो गई। ऐसे ही एक नेता हैं सुब्रमण्यम स्वामी, जो मोदी सरकार में राज्यसभा सांसद बने और आज काफ़ी मुखर और विद्रोही तेवर में नज़र आते हैं।

