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दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन को लेकर भारत-चीन तनाव और गदेन फोद्रांग ट्रस्ट की भूमिका

दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने को लेकर वर्तमान समय में भारत और चीन के बीच कड़ा तनाव देखा जा रहा है। यह विवाद न केवल दोनों देशों के बीच राजनीतिक-धार्मिक मसला बन चुका है, बल्कि तिब्बती बौद्ध परंपराओं के सम्मान और स्वायत्तता से जुड़ा एक संवेदनशील विषय भी है..........

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दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने को लेकर वर्तमान समय में भारत और चीन के बीच कड़ा तनाव देखा जा रहा है। यह विवाद न केवल दोनों देशों के बीच राजनीतिक-धार्मिक मसला बन चुका है, बल्कि तिब्बती बौद्ध परंपराओं के सम्मान और स्वायत्तता से जुड़ा एक संवेदनशील विषय भी है।

भारत का रुख और चीन की दखलंदाजी

केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने साफ किया है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव केवल दलाई लामा की इच्छा और तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपराओं के आधार पर होगा। इसका मतलब यह है कि इस पवित्र प्रक्रिया में कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं होगा, चाहे वह कोई देश हो या कोई राजनीतिक संगठन। वहीं, चीन इस चयन प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने के लिए दबाव डाल रहा है ताकि अगला दलाई लामा उसकी स्वीकृति से चुना जाए और उसे अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत इस्तेमाल किया जा सके।

इस मसले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा बटोरी है क्योंकि दलाई लामा की भूमिका न केवल धार्मिक है बल्कि तिब्बती संस्कृति और पहचान की भी रक्षा करती है।

गदेन फोद्रांग ट्रस्ट: तिब्बती बौद्ध धर्म की अहम संस्था

इस पूरी बहस के केंद्र में है गदेन फोद्रांग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust), जो तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग परंपरा की एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसकी स्थापना 17वीं सदी में 5वें दलाई लामा न्गावांग लोबसांग ग्यात्सो ने की थी, जिसका उद्देश्य दलाई लामा की आध्यात्मिक और प्रशासनिक विरासत को बनाए रखना था।

गदेन फोद्रांग ट्रस्ट दलाई लामा के पुनर्जन्म यानी उत्तराधिकारी की पहचान में केंद्रीय भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया में वरिष्ठ गेलुग लामा और ट्रस्ट के सदस्य धार्मिक संकेतों, दर्शन और पुराने रीति-रिवाजों के आधार पर संभावित बच्चों की पहचान करते हैं। यह प्रक्रिया पूरी तरह पारंपरिक तिब्बती बौद्ध मान्यताओं पर आधारित होती है।

दलाई लामा का हालिया बयान और उत्तराधिकारी चयन

2 जुलाई को 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने एक अहम बयान दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि अगले दलाई लामा का चुनाव सिर्फ गदेन फोद्रांग ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा और किसी बाहरी ताकत को इसमें हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होगी।

यह घोषणा उस समय आई जब चीन ने बार-बार इस प्रक्रिया पर अपनी दखलंदाजी जताई है। 1959 में चीनी सेना के विद्रोह के बाद दलाई लामा ने तिब्बत छोड़कर भारत में शरण ली थी और तब से वे धर्मशाला में हैं।

उत्तराधिकारी चयन की प्रक्रिया और आगामी संभावनाएं

उत्तराधिकारी की पहचान में सबसे पहले संभावित बच्चों की तलाश होती है। ये बच्चे पिछले दलाई लामा की वस्तुएं जैसे प्रार्थना माला आदि को पहचानते हैं, जिससे उनका चयन किया जाता है। यह प्रक्रिया धर्मशाला स्थित गदेन फोद्रांग ट्रस्ट के कार्यालय के मार्गदर्शन में होती है।

6 जुलाई को दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाया जाएगा। इस अवसर पर उत्तराधिकारी चयन से जुड़ी कोई घोषणा हो सकती है, हालांकि अभी तक इस पर आधिकारिक सूचना नहीं आई है।

गदेन फोद्रांग ट्रस्ट का महत्व

गदेन फोद्रांग ट्रस्ट तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वायत्तता का प्रतीक माना जाता है। यह तिब्बती समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करता है और परंपराओं के खिलाफ किसी भी तरह के दखल को रोकने का काम करता है। ट्रस्ट न केवल धार्मिक विरासत की सुरक्षा करता है, बल्कि तिब्बती लोगों की आवाज़ और स्वायत्तता को भी विश्व के सामने रखता है।

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