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त्रिनिदाद और टोबैगो भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है? 180 साल पुराने रिश्ते को मजबूत करने गए हैं पीएम मोदी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अफ्रीकी देश घाना से रवाना होकर कैरेबियन क्षेत्र के त्रिनिदाद और टोबैगो पहुंचेंगे। यह उनकी कैरेबियन देश की पहली आधिकारिक यात्रा है, जो प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर के निमंत्रण पर 3 से 4 जुलाई 2025 तक चलेगी........
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अफ्रीकी देश घाना से रवाना होकर कैरेबियन क्षेत्र के त्रिनिदाद और टोबैगो पहुंचेंगे। यह उनकी कैरेबियन देश की पहली आधिकारिक यात्रा है, जो प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर के निमंत्रण पर 3 से 4 जुलाई 2025 तक चलेगी। इस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी त्रिनिदाद और टोबैगो की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर से मुलाकात करेंगे। दोनों नेता भारतीय मूल के हैं, जिससे भारत और त्रिनिदाद और टोबैगो के बीच के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की झलक मिलती है। मोदी प्रधानमंत्री के रूप में कैरेबियन क्षेत्र की यह पहली यात्रा होने के साथ-साथ 1999 के बाद भारत की कैरेबियन देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए पहला महत्वपूर्ण कदम है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध

त्रिनिदाद और टोबैगो के साथ भारत के संबंध 180 साल से भी अधिक पुराने हैं। 19वीं सदी में भारत से हजारों गिरमिटिया मजदूरों ने त्रिनिदाद की ओर रुख किया था। 30 मई 1845 को समुद्री जहाज ‘फतेल रजाक’ में 225 भारतीय मजदूर त्रिनिदाद पहुंचे थे, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के थे। 1845 से 1917 के बीच कुल 1,34,183 भारतीय मजदूर यहां आए, जिनका काम मुख्यतः चीनी और कोको के बागानों में था। आज इस देश की करीब 37 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है, जो त्रिनिदाद और टोबैगो की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

राजनयिक और आर्थिक रिश्ते

भारत और त्रिनिदाद और टोबैगो के औपचारिक राजनयिक संबंध 31 अगस्त 1962 से हैं, जब त्रिनिदाद और टोबैगो को ब्रिटेन की गुलामी से स्वतंत्रता मिली। उस समय भारत ने इस स्वतंत्रता का खुले दिल से समर्थन किया था और जल्दी ही पोर्ट ऑफ स्पेन में अपना उच्चायोग स्थापित किया। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रमंडल राष्ट्र, जी-77 और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं।

वाणिज्यिक रूप से, भारत ने 2023-24 में त्रिनिदाद और टोबैगो को 109.06 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया, जिसमें वाहन, दवाइयां और कपड़े शामिल हैं। वहीं, भारत ने इस देश से 259.90 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऊर्जा से जुड़े उत्पादों का आयात भी किया। भारत-त्रिनिदाद और टोबैगो के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग को और बढ़ावा देने के लिए डिजिटलाइजेशन, फिनटेक, और जलवायु परिवर्तन से निपटने जैसे क्षेत्रों में भी बातचीत जारी है।

सामाजिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान

त्रिनिदाद और टोबैगो में भारतीय समुदाय की सांस्कृतिक जड़ें मजबूत हैं। हर साल 30 मई को भारतीय आगमन दिवस मनाया जाता है, जो इस दीर्घकालीन संबंध का प्रतीक है। इसके अलावा, वहां दीवाली, होली, और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे भारत के महत्वपूर्ण त्यौहार और कार्यक्रम भी धूमधाम से मनाए जाते हैं। 2025 में यहां नेल्सन द्वीप पर 180वां भारतीय आगमन दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया गया था।

कैरिबियन क्षेत्र में भारत की रणनीतिक मौजूदगी

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा भारत की कैरिबियन क्षेत्र में रणनीतिक और कूटनीतिक मौजूदगी को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत ने पिछले वर्ष नवंबर में कैरिबियन देश गुयाना का दौरा किया था। अब त्रिनिदाद और टोबैगो की यात्रा से भारत इस क्षेत्र में सहयोगियों के साथ अपनी साझेदारी को और भी मजबूत करेगा, खासकर उन मुद्दों पर जिनमें क्षेत्रीय तनावों से निपटना और आर्थिक विकास शामिल हैं। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी त्रिनिदाद और टोबैगो की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे, जहां भारत-त्रिनिदाद और टोबैगो संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में अपने विचार रखेंगे।

भारतीय मूल के नेताओं के साथ संवाद

प्रधानमंत्री मोदी इस दौरे में त्रिनिदाद और टोबैगो के भारतीय मूल की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर से मुलाकात करेंगे। यह दोनों नेता भारत के प्रति गहरे लगाव और सहकार्य के उदाहरण हैं। इससे भारत-त्रिनिदाद और टोबैगो के बीच द्विपक्षीय सहयोग के नए आयाम खुलने की उम्मीद है।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की त्रिनिदाद और टोबैगो की यह यात्रा भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत करेगी, बल्कि आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक सहयोग को भी नई दिशा देगी। कैरिबियन क्षेत्र में भारत की सक्रिय भूमिका और सहयोग भारत की वैश्विक पहुंच और प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होगी। ऐसे में यह यात्रा भारत के विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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