घनघोर बारिश, अंधेरी रात और साहसी सैनिक: जब भारत ने हाजी पीर पास पर लहराया था तिरंगा, फिर क्यों लौटा दिया 'चिकन नेक'?
तारीख थी 10 जनवरी, 1966। जगह थी ताशकंद, भारत पर राज करने वाले मुगलों के पैतृक देश उज्बेकिस्तान की राजधानी। यहीं भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के लिए 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में लौटने का प्रावधान था। इस यथास्थिति प्रावधान में शामिल बातों में से एक यह भी थी कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित हाजीपीर दर्रा वापस कर दिया जाए। बाद में 2002 में एक साक्षात्कार में भारतीय सेना के एक शीर्ष अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल दयाल ने कहा था कि यह दर्रा भारत को रणनीतिक बढ़त देता... इसे वापस सौंपना वाकई एक भूल थी। आइए इस दर्रे की पूरी कहानी समझते हैं, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में एक बड़ी भूल बताया है। कहा जा रहा है कि 60 साल पहले हुए ताशकंद समझौते की वह एक भूल भारत को बार-बार पुलवामा, पहलगाम जैसे जख्म देती रहती है।
हाजी पीर, जो पाकिस्तान का चिकननेक है, कहाँ है?
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) जेएस सोढ़ी बताते हैं कि हाजी पीर दर्रा हिमालय के पीर पंजाल पर्वतों में एक खूबसूरत जगह पर स्थित है। यह दर्रा जम्मू-कश्मीर के पुंछ को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के रावलकोट से जोड़ता है। यह पाकिस्तान का 'चिकनेक' है। हाजी पीर दर्रा 2,637 मीटर (8,652 फीट) की ऊँचाई पर है। यहाँ से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर घाटी का नज़ारा दिखाई देता है। आज यह कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ का मुख्य रास्ता है। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, इस हाजी पीर पर फिर से कब्ज़ा करने की माँग उठी थी, जिसके ज़रिए पाकिस्तानी आतंकवादी कश्मीर घाटी में घुसपैठ करते हैं।
भारत के लिए हाजीपुर दर्रा कितना महत्वपूर्ण है?
जेएस सोढ़ी के अनुसार, अगर भारत के पास हाजी पीर दर्रा होता है, तो इससे भारतीय सेना को रणनीतिक रूप से कई तरह से फ़ायदा हो सकता है। अगर भारत के पास यह दर्रा होता, तो पुंछ और उरी के बीच सड़क की दूरी 282 किलोमीटर से घटकर 56 किलोमीटर रह जाती। इससे जम्मू और कश्मीर घाटी के बीच बेहतर सड़क संपर्क होता। इससे सेना की रसद आपूर्ति और व्यापार में भी सुधार होता। 1965 के युद्ध में, भारत ने पाकिस्तानी क्षेत्र के 1,920 वर्ग किलोमीटर पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसमें मुख्य रूप से सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्र की उपजाऊ भूमि शामिल थी। इसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हाजी पीर दर्रा भी शामिल था।
1948 में पाकिस्तान ने हाजी पीर पर कब्ज़ा कर लिया
विभाजन से पहले, उत्तरी कश्मीर यानी जम्मू घाटी को दक्षिण कश्मीर यानी घाटी से जोड़ने वाली मुख्य सड़क हाजी पीर से होकर गुजरती थी। हालाँकि, 1948 में पाकिस्तान ने पीओके पर कब्ज़ा कर लिया, जिसमें हाजी पीर दर्रा भी शामिल था। यह मार्ग भारत के हाथ से निकल गया। इस दर्रे से भारत पीओके के एक बड़े हिस्से तक आसानी से पहुँच सकता था। इससे पाकिस्तान को अपनी नाज़ुक स्थिति का एहसास होता रहता।
ताशकंद समझौते की वह बड़ी भूल क्या थी?
रक्षा विश्लेषक जेएस सोढ़ी के अनुसार, 1965 में ताशकंद समझौते के दौरान भारत ने पाकिस्तान को उसकी कब्ज़ा की हुई ज़मीन वापस कर दी थी। भारत की मज़बूत स्थिति के बावजूद, उसने हाजी पीर दर्रा इस्लामाबाद को वापस कर दिया। तब से, पाकिस्तान इस दर्रे का इस्तेमाल भारत को पुलवामा और पहलगाम जैसे ज़ख्म देने के लिए करता आ रहा है। रक्षा विशेषज्ञ इसे एक बड़ी भूल मानते हैं।
भारत ने 1965 में हाजी पीर पर कब्ज़ा किया था
विभाजन के तुरंत बाद, 1948 में, पाकिस्तान ने कश्मीर के लगभग एक-तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था। 1965 में पाकिस्तान ने एक बार फिर पूरे कश्मीर पर कब्ज़ा करने की सोची। उसी साल अगस्त में, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर को मंज़ूरी दे दी, ताकि कश्मीर में अस्थिरता पैदा करने और अंततः पाकिस्तानी सेना की मदद से उस पर कब्ज़ा करने के लिए गुप्त रूप से बड़ी संख्या में गुरिल्लाओं को कश्मीर में भेजा जा सके।
ऑपरेशन बख्शी चलाकर भारतीय सेना ने जीत हासिल की
15 अगस्त 1965 को, भारतीय सेना ने ऑपरेशन बख्शी चलाया और युद्धविराम रेखा (सीएफएल) पार करके तीन पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया। हाजी पीर बल्ज पर भी कब्ज़ा करने का निर्णय लिया गया, क्योंकि यह पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुख्य घुसपैठ मार्ग था। सोढ़ी के अनुसार, भारत का यह ऑपरेशन बेहद सफल रहा। इसने पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर को परास्त कर दिया।
सेना ने 1965 में हाजी पीर दर्रे की योजना बनाई
1965 के युद्ध के दौरान, पश्चिमी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह ने हाजी पीर की योजना बनाई। हाजी पीर दर्रे पर कब्ज़ा करने की कमान मेजर जनरल एसएस कलान के नेतृत्व वाली 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन और ब्रिगेडियर जेडसी बख्शी के नेतृत्व वाली 68वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड को सौंपी गई। 26 अगस्त को, 1 पैरा बटालियन सांक की ओर बढ़ी। उन्हें भारी बारिश में एक खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना पड़ा। सांक पर कब्ज़ा करने के बाद, भारतीय सेना ने लेदवाली गली पर दबाव बनाया और अगले दिन उस पर कब्ज़ा कर लिया।
भारत ने बहादुरी से हाजी पीर दर्रे पर विजय प्राप्त की
भारतीय सेना ने बेदोरी पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई। लेकिन, ब्रिगेडियर बख्शी समझ गए कि अब तक पाकिस्तान को पता चल गया होगा कि भारतीय हाजी पीर दर्रे पर कब्ज़ा करने के लिए दबाव बना रहे हैं। इसलिए उन्होंने सीधे हाजी पीर दर्रे पर जाने का एकतरफ़ा फ़ैसला लिया। मेजर रणजीत सिंह दयाल को यह काम सौंपते हुए ब्रिगेडियर बख्शी ने कहा कि अगर आप हाजी पीर पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो आप हीरो बन जाएँगे, लेकिन अगर आप नहीं जीतते हैं तो एकतरफ़ा फ़ैसला लेने के लिए मुझे गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। मेजर रणजीत सिंह दयाल 27 अगस्त की रात भर भारी बारिश में पैदल चलते रहे और 28 अगस्त को भारी बाधाओं के बावजूद हाजी पीर दर्रे पर कब्ज़ा कर लिया। पाकिस्तान ने 29 अगस्त को दर्रे पर फिर से कब्ज़ा करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने उन हमलों को नाकाम कर दिया।

