मी टू मामले में Priya Ramani को बरी करने को चुनौती देने वाली एम जे अकबर की याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई टली
यह मामला न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की अदालत के समक्ष अपील करने की अनुमति की दलीलों पर सुनवाई के लिए आया था। लेकिन इसमें सुनवाई टाल दी गई और समय आने पर मामले की सनुवाई की जाएगी।
एम.जे, अकबर का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर और गीता लूथरा ने रखा है जिसमें करंजावाला एंड कंपनी की टीम के संदीप कपूर वीर संधू, विवेक सूरी, निहारिका करंजावाला और अपूर्व पांडे, अधिवक्ता शामिल थे। प्रिया रमानी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता भावुक चौहान ने किया।
गौरतलब है कि मी टू आंदोलन 2018 के मद्देनजर, रमानी ने अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। इसके बाद अकबर ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया और उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। मामले की सुनवाई 2019 में शुरू हुई और यह लगभग दो वर्षों तक चली।
प्रिया रमानी को पिछले साल 17 फरवरी को, दिल्ली की एक अदालत ने मामले में बरी कर दिया था। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा महिला को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर और दशकों के बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।
अदालत ने आगे कहा था कि प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा गरिमा के अधिकार की कीमत पर नहीं की जा सकती। मानहानि की शिकायत के बहाने यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने पर महिलाओं को सजा नहीं दी जा सकती है।
रमानी ने वोग के लिए एक लेख 2017 में लिखा था जिसमें उन्होंने संस्थान में नौकरी के लिए साक्षात्कार के दौरान एक पूर्व बॉस द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के अपने अनुभव का वर्णन किया। एक साल बाद, प्रिया ने खुलासा किया कि लेख में उत्पीड़क के रूप में जिस व्यक्ति का उल्लेख किया गया है वह और कोई नहीं बल्कि एम जे अकबर हैं।
अकबर ने अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि इस मामले में रमानी के आरोप बेबुनियाद थे और इससे उनकी प्रतिष्ठा को हानि हुई है। दूसरी ओर, रमानी ने इन दावों का विरोध किया और अपनी बात को सच बताया और कहा कि उन्होंने सद्भावना, जनहित और जनता की भलाई के लिए आरोप लगाए हैं।
इस मामले में आया फैसला महत्वपूर्ण इसलिए था क्योंकि इसी तरह के मामले दूसरों के लिए एक मिसाल कायम करते हैं।
--आईएएनएस
जेके