वो आज भी जस्टिस वर्मा हैं, गरिमा बनाए रखें; वकील पर सुप्रीम कोर्ट क्यों हुआ नाराज?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी विवाद से जुड़ी FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका की तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। यह याचिका वकील मैथ्यूज नेदुमपारा द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच के समक्ष इसे जल्द से जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की गुजारिश की। चीफ जस्टिस ने वकील से पूछा, "क्या आप चाहते हैं कि इसे अभी खारिज कर दिया जाए?" उन्होंने यह भी कहा कि याचिका को उचित समय पर सुनवाई के लिए रखा जाएगा। वकील ने जोर देकर कहा कि FIR दर्ज होनी चाहिए और इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी आवश्यक है।
हालांकि, बेंच ने वकील की तरफ से जज को 'वर्मा' कहकर संबोधित करने पर कड़ी नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस ने कड़े लहजे में कहा, "क्या वह आपके दोस्त हैं? वह अभी भी जस्टिस वर्मा हैं। आप उन्हें इस तरह कैसे बुला सकते हैं? कृपया कुछ मर्यादा रखें। वे एक जज हैं।" इस पर वकील ने कहा कि मामला गंभीर है और इसे जल्दी सूचीबद्ध करना जरूरी है, लेकिन चीफ जस्टिस ने उन्हें कहा, "कृपया कोर्ट को आदेश न दें।"
जस्टिस वर्मा की याचिका और जांच कमेटी की रिपोर्ट
यह विवाद तब शुरू हुआ जब जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने आंतरिक जांच कमेटी की उस रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की, जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी मामले में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना की 8 मई की सिफारिश को भी चुनौती दी, जिसमें संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू करने की बात कही गई थी।
जांच कमेटी ने क्या पाया?
इस मामले की जांच पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता में बनी तीन जजों की कमेटी ने की। कमेटी ने लगभग 10 दिनों तक जांच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और घटनास्थल का दौरा भी किया।
जांच रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के सदस्य उस स्टोर रूम पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण रखते थे, जहां भारी मात्रा में आधी जली हुई नकदी मिली थी। यह नकदी उनके आधिकारिक आवास पर 14 मार्च को रात लगभग 11:35 बजे लगी आग की घटना के दौरान बरामद हुई थी। कमेटी ने इस घटना को गंभीर कदाचार माना और जस्टिस वर्मा के हटाने की सिफारिश की। इसके आधार पर पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की थी।
मामला अभी भी विवादित
जस्टिस वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी विवाद ने न्यायिक व्यवस्था में सवाल खड़े कर दिए हैं। जबकि जांच कमेटी ने उन्हें दोषी माना है, जस्टिस वर्मा इस रिपोर्ट को चुनौती दे रहे हैं और मामले की निष्पक्ष सुनवाई की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल याचिका की तत्काल सुनवाई से इनकार किया है, लेकिन यह मामला अभी भी न्यायालयों के समक्ष लंबित है और भविष्य में इसका राजनीतिक और न्यायिक दोनों ही स्तरों पर व्यापक प्रभाव हो सकता है।

