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बाबरी केस सुलझा सकते थे पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, तैयार था प्लान लेकिन फिर कहां फंसा पेच? यहां जानिए सबकुछ

बाबरी मस्जिद का विवाद सालों तक चला। कई बार आपसी बातचीत से इसे सुलझाने की कोशिश की गई। कभी सरकार की ओर से तो कभी पार्टी की ओर से। लेकिन हर कोशिश नाकाम रही। आखिरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम मंदिर के पक्ष में...
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बाबरी मस्जिद का विवाद सालों तक चला। कई बार आपसी बातचीत से इसे सुलझाने की कोशिश की गई। कभी सरकार की ओर से तो कभी पार्टी की ओर से। लेकिन हर कोशिश नाकाम रही। आखिरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। अब उसी बाबरी विवाद को लेकर एक किताब में नया दावा किया गया है। किताब के मुताबिक, अटल बिहारी वाजपेयी के पास कभी बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद को सुलझाने की एक योजना थी। इस पर काफी चर्चा हुई, लेकिन आडवाणी तैयार नहीं हुए। बाद में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढांचे के विध्वंस से अटल बहुत दुखी हुए थे।

इतिहासकार अभिषेक चौधरी की किताब 'बिलीवर्स डिलेमा: वाजपेयी एंड द हिंदू राइट्स पाथ टू पावर' में इस बात का खुलासा हुआ है। यह किताब पूर्व पीएम वाजपेयी पर है। इस किताब में लिखा है कि अटल बिहारी वाजपेयी के पास बाबरी विवाद को सुलझाने की एक योजना थी। उन्होंने बाबरी विवाद के समाधान के लिए एक विशेष फ़ॉर्मूला भी तैयार किया था, जिसे वीपी सिंह सरकार भी मानने को तैयार थी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की असहमति के कारण योजना को स्थगित कर दिया गया था।

अटल की योजना क्या थी?

पुस्तक के अनुसार, अटल बिहारी वाजपेयी की योजना के तहत, तत्कालीन वीपी सरकार अयोध्या में विवादित स्थल को छोड़कर 67 एकड़ ज़मीन विहिप यानी विश्व हिंदू परिषद को सौंपने वाली थी और विवादित स्थल का मामला सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाना था। वीपी सिंह इस पर अध्यादेश लाने के लिए भी सहमत हो गए थे। यहाँ तक कि राष्ट्रपति को भी अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने के लिए आधी रात को 12:30 बजे जगाया गया था। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी नहीं माने। क्योंकि उन्हें वीपी सिंह पर भरोसा नहीं था।

वीपी सिंह को अध्यादेश वापस लेना पड़ा।

इस कदम से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और मुलायम सिंह यादव जैसे जनता दल के नेता नाराज़ हो गए। दूसरी ओर, विहिप ने भी अपनी कार सेवा बंद करने से इनकार कर दिया और लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा जारी रखी। परिणामस्वरूप, वीपी सिंह को अध्यादेश वापस लेना पड़ा। किताब में यह भी ज़िक्र है कि 5 दिसंबर 1992 को लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि 'वहाँ नुकीले पत्थर हैं, वहाँ कोई नहीं बैठ सकता। ज़मीन समतल करनी होगी ताकि लोग वहाँ बैठ सकें।'

अटल को अफ़सोस हुआ?

किताब के अनुसार, अगली दोपहर यानी 6 दिसंबर 1992 को, वाजपेयी दिल्ली में अपने ड्राइंग रूम में बैठे बाबरी मस्जिद के विध्वंस को देख रहे थे। लेकिन कुछ हफ़्तों बाद उन्हें 'व्यक्तिगत रूप से नैतिक रूप से क्षोभ हो रहा था कि उन्हें उस चीज़ का बचाव करना पड़ रहा है जिसका बचाव नहीं किया जा सकता।'

इस विरोध प्रदर्शन में कौन शामिल था?

अभिषेक चौधरी ने अटल की जीवनी में लिखा है, 'बाबरी विध्वंस के अगले दिन, उनकी दत्तक पुत्री गुन्नू एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं, जहाँ लोग तख्तियाँ लिए हुए थे और कह रहे थे कि उन्हें बहुसंख्यक धर्म से जुड़े होने पर बहुत शर्म आती है... एक दोस्त ने आडवाणी के घर में एक उदासी देखी जो इस बात का संकेत थी कि वह इस्तीफ़ा देने वाले हैं... वह परेशान थे, यह बनावटी नहीं था। परिवार शोक मना रहा था।'

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