संविधान से 'समाजवादी' और 'सेक्युलर' शब्द हटाने की मांग पर गरमाई सियासत: कांग्रेस ने RSS पर बोला तीखा हमला

भारत के संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'सेक्युलर' शब्दों को हटाने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की मांग को लेकर देश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। कांग्रेस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे भाजपा और RSS की साजिश बताया है। कांग्रेस का आरोप है कि संघ परिवार भारत के संविधान को कमजोर करना चाहता है, जिसे बाबा साहेब अंबेडकर ने गढ़ा था। इस मुद्दे की शुरुआत RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के एक बयान से हुई, जिसमें उन्होंने कहा कि ये दोनों शब्द मूल संविधान में शामिल नहीं थे और आपातकाल के दौरान इन्हें जोड़ा गया। इसके बाद कांग्रेस ने इसे सीधे तौर पर संविधान के मूल ढांचे पर हमला बताया।
कांग्रेस का तीखा हमला
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपने पोस्ट में लिखा:"RSS ने कभी भी भारत के संविधान को स्वीकार नहीं किया। 30 नवंबर 1949 के बाद से उन्होंने डॉ. आंबेडकर, पं. नेहरू और संविधान निर्माण में जुड़े महापुरुषों पर हमला किया है। उनके अपने शब्दों में, यह संविधान 'मनुस्मृति' से प्रेरित नहीं था और यही उन्हें खटकता है।"
जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि यह पूरा अभियान भाजपा और RSS के उस एजेंडे का हिस्सा है, जिसके तहत वे एक नया संविधान बनाना चाहते हैं। उन्होंने लिखा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से एक "नया संविधान" लाने की बात कही गई थी, लेकिन देश की जनता ने इसे खारिज कर दिया।
क्या बोले थे RSS नेता दत्तात्रेय होसबोले?
RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'सेक्युलर' शब्द नहीं थे।
उन्होंने कहा:“जब आपातकाल के दौरान संसद निष्क्रिय थी, मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और न्यायपालिका पंगु हो चुकी थी, उस वक्त संविधान में ये शब्द जोड़े गए। क्या समाजवाद भारत की शाश्वत विचारधारा है? इस पर विचार होना चाहिए। यह बयान राजनीतिक हलकों में बवाल का कारण बन गया है। विपक्ष इसे संविधान की आत्मा के साथ छेड़छाड़ की कोशिश मान रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ
कांग्रेस महासचिव रमेश ने भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा 25 नवंबर 2024 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्द 'समाजवादी' और 'सेक्युलर' भारत के लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का हिस्सा हैं। उन्होंने कोर्ट के फैसले की एक प्रति भी सोशल मीडिया पर साझा की, ताकि यह दिखाया जा सके कि इस मुद्दे पर देश की सर्वोच्च अदालत की स्थिति क्या है।
संविधान में कब और कैसे जुड़े ये शब्द?
भारत के संविधान में "समाजवादी" और "सेक्युलर" शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के जरिए जोड़े गए थे।
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'समाजवादी' का अर्थ है कि राज्य नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करेगा।
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'सेक्युलर' का तात्पर्य है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों को समान मान्यता और सम्मान मिलता है।
इन शब्दों को लेकर पहले भी विवाद उठते रहे हैं, लेकिन अब जब उन्हें हटाने की मांग सामने आई है, तो सियासी घमासान तेज हो गया है।
राजनीतिक एजेंडे पर सवाल
कई राजनीतिक विशेषज्ञ इस मुद्दे को 2024 लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और संघ के राजनीतिक एजेंडे का अगला कदम मानते हैं। तथ्य यह है कि संविधान की मूल आत्मा और लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती देना न केवल विपक्ष, बल्कि कई संविधान विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को भी चिंतित कर रहा है।