दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तलाक के लिए एक साल अलग रहना जरूरी नहीं, फुटेज में देखें कहा- पति पत्नी को अनचाहे रिश्ते में रखना गलत
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि आपसी सहमति से तलाक लेने वाले पति-पत्नी के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक साल तक अलग रहने की शर्त अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में यह शर्त माफ की जा सकती है यदि परिस्थितियां इसे उचित नहीं मानती।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं, तो उन्हें शादी के बंधन में फंसा कर रखना अनुचित है। ऐसा करने से दोनों पर अनावश्यक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक तनाव पड़ता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में युगल को तलाक देने की प्रक्रिया को रोककर उन्हें गलत रिश्ते में उलझाए रखना गलत होगा।
यह स्पष्टीकरण एक डिवीजन बेंच द्वारा किए गए रेफरेंस के जवाब में आया, जिसमें यह मार्गदर्शन मांगा गया था कि आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दाखिल करने की समयसीमा और शर्तों पर क्या दिशा-निर्देश होने चाहिए। कोर्ट ने यह साफ किया कि अधिनियम में उल्लेखित एक साल अलग रहने की शर्त केवल तभी लागू होती है जब परिस्थितियां उसके लिए सही हों, अन्यथा इसे अनदेखा किया जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला पति-पत्नी के अधिकार और मानसिक स्वास्थ्य के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इससे ऐसे दंपत्तियों को राहत मिलेगी, जो आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं और जिनके बीच मतभेदों के कारण आगे बढ़ने में बाधा आ रही थी।
हाईकोर्ट का यह रुख सामाजिक और कानूनी दृष्टि से भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह शादी के बंधन को खत्म करने की प्रक्रिया को सरल और मानवीय बनाने की कोशिश करता है, जबकि अनावश्यक कानूनी जटिलताओं और तनाव से बचाता है।

