क्या सुप्रीम कोर्ट दे सकता है राष्ट्रपति को निर्देश? जानिए क्या है गवर्नर वीटो केस
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में राष्ट्रपति को निर्देश दिया कि वह राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लें। यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के कार्यकाल की सीमा तय की है। ऐसे में अब यह बहस शुरू हो गई है कि क्या सुप्रीम कोर्ट देश के राष्ट्रपति को भी निर्देश दे सकता है?
केंद्र सरकार याचिका तैयार कर रही है
'द हिन्दू' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार अदालत के इस फैसले को चुनौती देने के लिए एक याचिका तैयार कर रही है। सरकार का मानना है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदों के लिए कोई समय-सीमा तय करना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो सकता है। ज्ञात हो कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब न्यायालय ने समय सीमा तय करने के संबंध में सीधे राष्ट्रपति को कोई निर्देश दिया है।
क्या न्यायालय न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की रेखा को पार कर रहा है?
आपको बता दें कि राष्ट्रपति देश का मुखिया होता है। उन्हें देश के संविधान का संरक्षक और सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर माना जाता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री की सलाह पर काम करता है। यदि न्यायालय राष्ट्रपति को कोई आदेश जारी करता है तो इससे संवैधानिक व्यवस्था पर कई सवाल उठते हैं, जिसमें राष्ट्रपति कार्यपालिका की सलाह पर ही काम करता है। ऐसे में यह संदेह पैदा होता है कि क्या न्यायालय न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की रेखा को पार कर रहा है?
यदि राष्ट्रपति आदेश का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा?
आपको बता दें कि भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति को अदालत में अपने कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। तो सवाल यह उठता है कि अगर राष्ट्रपति न्यायालय के इस आदेश का पालन करने से इनकार कर दें तो क्या होगा? इसीलिए यह मामला भविष्य में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव का कारण बन सकता है। कई आलोचकों का मानना है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले से राज्यपालों को दी गई मनमानी शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहता है, लेकिन इस प्रक्रिया से देश के राष्ट्रपति की स्वतंत्रता और गरिमा भी प्रभावित होती है।