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एंटी-इनकंबेंसी हो या विपक्ष का प्रचार, चुनावों में पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा ही चेहरा..आखिर क्यों इन तीनों पर लगातार बढ़ रही बीजेपी की निर्भरता

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर संगठनात्मक चुनावों की सरगर्मी बढ़ती जा रही है। सोमवार को इस प्रक्रिया को लेकर एक के बाद एक कई अहम बैठकें हुईं, जिनसे पार्टी की रणनीतिक गतिविधियां तेज़ होती नजर आईं। सबसे पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष....
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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर संगठनात्मक चुनावों की सरगर्मी बढ़ती जा रही है। सोमवार को इस प्रक्रिया को लेकर एक के बाद एक कई अहम बैठकें हुईं, जिनसे पार्टी की रणनीतिक गतिविधियां तेज़ होती नजर आईं। सबसे पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद शाम को नड्डा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिले। इन दोनों मुलाकातों को संगठनात्मक चुनावों की दिशा और तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी की रणनीति के लिहाज से ये बैठकें बेहद अहम मानी जा रही हैं, क्योंकि संगठन के चुनाव केवल औपचारिक प्रक्रिया भर नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की दिशा तय करने वाले क्षण होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह के साथ अध्यक्ष नड्डा की ये गहन वार्ताएं आने वाले राजनीतिक समीकरणों और नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं को भी जन्म दे रही हैं।

योगी आदित्यनाथ की शाह से भेंट भी बनी चर्चा का विषय

इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण मुलाकात ने हलचल बढ़ा दी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले। हालांकि इसे एक सरकारी कार्यक्रम के आमंत्रण से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में इस मुलाकात का महत्व कुछ और है। उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री की अमित शाह से ऐसे वक्त पर मुलाकात, जब संगठन चुनावों को लेकर हलचल तेज है, इसे केवल औपचारिकता मानना कठिन है। इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी संगठनात्मक ढांचे में योगी आदित्यनाथ की भूमिका को लेकर भी कुछ स्पष्टता इन बैठकों के माध्यम से बन सकती है।

कई बड़े राज्यों में लंबित हैं प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव

भाजपा के संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो इस समय पार्टी के कई प्रमुख राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव अभी तक पूरा नहीं हुआ है। इनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। इन राज्यों में अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया लंबित है, जो पार्टी के आंतरिक चुनावी तंत्र की दिशा में एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ी है। फिलहाल केवल 14 राज्यों में ही प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव हो चुका है। बाकी राज्यों में यह प्रक्रिया अभी शुरू होनी है या अधर में लटकी हुई है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि बीजेपी का संगठनात्मक तंत्र फिलहाल अपने संपूर्ण स्वरूप में नहीं है, और उसे पूरा करने के लिए पार्टी नेतृत्व सक्रिय रूप से जुटा है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में देरी संभव, 19 राज्यों का कोटा जरूरी

भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया तब तक शुरू न हीं हो सकती जब तक कम से कम 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्रदेश अध्यक्षों का निर्वाचन न हो जाए। इसका सीधा अर्थ यह है कि जब तक ये लंबित संगठन चुनाव नहीं निपटते, तब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की औपचारिकता नहीं हो सकती। इस परिस्थिति में यह साफ हो गया है कि पार्टी फिलहाल अपने आंतरिक संगठन को पूरी तरह मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। इन चुनावों में पारदर्शिता, योग्यता और क्षेत्रीय संतुलन को साधना पार्टी नेतृत्व के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी बन चुकी है।

राजनीतिक संकेत और भविष्य की तैयारी

पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकातों के जरिए यह भी आकलन किया जा रहा है कि भाजपा केवल संगठनात्मक ढांचा ही नहीं बना रही, बल्कि आगामी चुनावों – विशेषकर 2026 के विधानसभा चुनाव और 2029 के आम चुनाव की नींव भी रख रही है। इसलिए यह केवल आंतरिक लोकतंत्र की प्रक्रिया नहीं, बल्कि व्यापक रणनीतिक कदम है। इसके साथ ही, पार्टी के अंदर संभावित चेहरों को आगे लाने, नए नेतृत्व को तराशने और पुराने नेतृत्व को पुनर्संतुलित करने की प्रक्रिया भी तेज होती दिख रही है। यही कारण है कि हर बैठक, हर मुलाकात, और हर निर्णय को गंभीर राजनीतिक विश्लेषण की नजर से देखा जा रहा है।

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