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टाइगर’ अब सिर्फ यादों में जिंदा रहेगा, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की अंतिम यात्रा में नम हुईं आंखें, भर आया हर दिल

टाइगर’ अब सिर्फ यादों में जिंदा रहेगा: पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की अंतिम यात्रा में नम हुईं आंखें, भर आया हर दिल

सबको हंसी बाँटने वाले छत्तीसगढ़ के प्रख्यात कवि, साहित्यकार और पद्मश्री सम्मानित डॉ. सुरेंद्र दुबे अब केवल यादों में जीवित रहेंगे। शुक्रवार को रायपुर के मारवाड़ी श्मशान घाट में पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। बेटे अभिषेक दुबे ने उन्हें मुखाग्नि दी, और उस क्षण पूरा माहौल गमगीन और भावुक हो गया।

अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब

इस मौके पर देश-प्रदेश से पहुंचे कवि, लेखक, अभिनेता, गायक, राजनेता और आम लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे। हर किसी की आंखें नम थीं, और दिल भरा हुआ। किसी ने उन्हें मंच का ‘शेर’ कहा, तो किसी ने ‘टाइगर’, जो आखिरी सांस तक मुस्कान और व्यंग्य से समाज को झकझोरते रहे।

अमर उजाला से साझा किए भावुक किस्से

कई साहित्यकारों और कलाकारों ने अमर उजाला से अपने अनछुए किस्से साझा किए—

  • एक वरिष्ठ कवि ने कहा, "डॉ. दुबे की हास्य की धार ऐसी थी कि गंभीर विषय भी चुटकियों में कह जाते थे, और लोग ठहाके लगाते-लगाते सोचने लगते थे।"

  • एक नवोदित लेखक ने बताया, "पहली बार जब मैं उनसे मिला तो मंच के पीछे मुझे ऐसा हौसला दिया, जो शायद कोई गुरु ही दे सकता है।"

  • एक लोकगायक ने भावुक होकर कहा, "वो शब्दों के जादूगर थे। उनकी कविताओं में जो सहजता थी, वही उन्हें आम से खास बनाती थी।"

जीवनभर हंसाया, अब रुला गए

डॉ. सुरेंद्र दुबे के निधन से न केवल साहित्य जगत, बल्कि आम नागरिकों में भी गहरा दुख है। वो न केवल हास्य कविताओं के बेताज बादशाह थे, बल्कि एक संवेदनशील समाजचिंतक भी थे, जिन्होंने अपनी लेखनी से आम जन की भावनाओं को मंच पर उतारा।

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