छत्तीसगढ़ के गौरव, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताओं का प्रभाव अब भी बना हुआ

छत्तीसगढ़ के विख्यात हास्य कवि और व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताएँ न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सात समुंदर पार विदेशों में भी गूंजती हैं। उनकी कविताओं का असर इतना गहरा है कि आज भी लोग उन्हें अपनी जुबां पर लाए बिना नहीं रह सकते। विशेष रूप से अमेरिका दौरे के दौरान कही गई उनकी कविताएँ जैसे 'दु के पहाड़ा ल चार बार पढ़, एला कहिथे छत्तीसगढ़...', 'टाइगर अभी जिंदा है...', और 'पीएम मोदी के आने से फर्क पड़ा है...' आज भी लोगों की जुबां पर गूंज रही हैं।
विदेशों में भी गूंजती हैं उनकी कविताएं
डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताएँ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी विशेष पहचान बना चुकी हैं। उनकी कविताएँ उस समय भी ध्यान आकर्षित करती थीं जब वह अमेरिका गए थे। उनकी कविताओं का मजाकिया और व्यंग्यपूर्ण अंदाज लोगों को खूब भाता था। खासकर उनकी लाइन 'दु के पहाड़ा ल चार बार पढ़, एला कहिथे छत्तीसगढ़...' ने न केवल छत्तीसगढ़ी समाज को बल्कि भारतीयों को भी अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति गर्व का अहसास कराया।
'टाइगर अभी जिंदा है' और 'पीएम मोदी के आने से फर्क पड़ा है'
उनकी प्रसिद्ध कविता 'टाइगर अभी जिंदा है' एक ऐतिहासिक लाइन बन गई थी, जो राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ में लोगों द्वारा बार-बार कही जाती रही। यह कविता राजनीतिक और समाजिक बदलावों पर एक गहरे संदेश के रूप में उभरी थी। साथ ही, उनकी कविता 'पीएम मोदी के आने से फर्क पड़ा है...' भी चर्चा का विषय बनी थी, जो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुए बदलावों और उनके प्रभाव को व्यंग्यात्मक रूप में दर्शाती थी।
'राम मंदिर' के प्राण प्रतिष्ठा पर कविता
डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताओं का असर धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी था। अयोध्या राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के समय, उन्होंने एक कविता लिखी थी जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है: "पाँच अगस्त का सूरज राघव को लाने वाला है, राम भक्त जयघोष करो मंदिर बनने वाला है..." इस कविता ने न केवल राम भक्तों को प्रेरित किया, बल्कि पूरे देश में एकता और विश्वास की भावना को मजबूत किया।
बड़ों से लेकर बच्चों की जुबां पर रटी रटाई कविताएं
डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताओं का प्रभाव इतना व्यापक था कि आज भी बड़ों से लेकर बच्चों की जुबां पर उनकी कविताएं रटी-रटी रहती हैं। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में उनकी कविताएं सुनने को मिलती हैं। उनकी कविताएं न केवल हंसी और आनंद का स्रोत थीं, बल्कि उन्होंने समाज के गंभीर मुद्दों को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिससे लोग अपनी समस्याओं को समझने और उनका समाधान खोजने में सक्षम हुए।
उनकी धरोहर का प्रभाव लंबे समय तक रहेगा
आज डॉ. सुरेंद्र दुबे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएं और उनका साहित्यिक योगदान हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगा। उनका हंसी-ठहाके के बीच गहरे संदेश देने का तरीका एक विरासत बन चुका है, जिसे आने वाली पीढ़ियां भी याद रखेंगी। उनकी कविताएं सिर्फ मनोरंजन का स्रोत नहीं थीं, बल्कि एक माध्यम थीं समाज को जागरूक करने का और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराने का।
उनका योगदान न केवल छत्तीसगढ़ी साहित्य को बल्कि समग्र भारतीय साहित्य को भी समृद्ध और विविधतापूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण रहा है।