छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच वैवाहिक दायित्वों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया
Chhattisgarh High Court (छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट) की एक डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया है कि यदि पत्नी लगातार पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इंकार करती है — और वैवाहिक दायित्वों से इनकार निरंतर और गंभीर रूप से होता रहे — तो इसे पति के प्रति “मानसिक क्रूरता” माना जा सकता है। इस आधार पर अदालत ने पति की तलाक याचिका को मंजूर कर दिया। The Times of India+2Patrika News+2
🧑⚖️ मामला क्या था
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इस याचिका में पति का कहना था कि उसकी शादी 2009 में हुई थी, लेकिन केवल एक माह बाद ही पत्नी मायके चली गई थी। इसके बाद पति-पत्नी का वैवाहिक वास एवं शारीरिक संबंध पूरी तरह टूट गए। पति कई बार वैवाहिक दायित्व निभाने की कोशिश करता रहा, लेकिन पत्नी ने लगातार इनकार किया। साथ ही आरोप है कि पत्नी ने पति को “अगर तुम शारीरिक संबंध बनाओगे, मैं आत्महत्या कर लूंगी” जैसी धमकी दी। Punjab Kesari MP+2The Times of India+2
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पति ने पहले फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट से अपील की। The Times of India+1
कोर्ट का तर्क
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हाईकोर्ट की बेंच — Rajani Dubey और Amitendra Kishore Prasad — ने कहा कि यदि कोई विवाहित जाति (पति या पत्नी) बार-बार वैवाहिक दायित्वों को ठुकराए, भौतिक नज़दीकी से लगातार इंकार करे, और वैवाहिक जीवन न चाहते हुए अलगाव बनाए रखे, तो यह “मानसिक क्रूरता” (mental cruelty) की श्रेणी में आता है। The Times of India+1
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कोर्ट ने पाया कि दशकों लंबे अलगाव और शारीरिक संबंधों से नकारात्मक रवैये से पति का मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है, जिससे वैवाहिक जीवन “अपरिवर्तनीय रूप से टूटा” माना जा सकता है। The Times of India+2Patrika News+2
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अदालत ने फैमिली कोर्ट के 2023 के फैसले को रद्द किया और पति की अपील मंजूर करते हुए तलाक की याचिका को स्वीकार कर लिया। The Times of India+2Punjab Kesari MP+2
फैसले का मतलब और व्यापक असर
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यह फैसला परिवारिक कानून तथा तलाक से जुड़े मामलों में “वैवाहिक दायित्वों” (marital obligations) की व्याख्या को और स्पष्ट करता है। अब केवल शारीरिक शोषण या घरेलू हिंसा ही नहीं, बल्कि वैवाहिक संबंधों से लगातार इंकार, संवेदनात्मक अलगाव आदि को भी “क्रूरता” माना जा सकता है।
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इससे यह संकेत मिलता है कि यदि कोई विवाहित व्यक्ति (पति/पत्नी) अपने वैवाहिक दायित्वों से बार-बार इनकार करता है और दूसरा पक्ष मानसिक व भावनात्मक रूप से टूट जाता है, तो अदालतें इसे तलाक का आधार मान सकती हैं।
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साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि “शारीरिक संबंध” को कितनी बार/कितने प्रयासों पर अदालतें वैवाहिक दायित्व मानेंगी। हर मामले में अलग परिस्थिति, प्रमाण और दस्तावेज़ों की अहमियत रहेगी — यानी, यह एक विस्तृत, तथ्यों पर आधारित जांच का विषय है।

