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तेंदूपत्ता संग्रहण में 5.13 करोड़ रुपये का घोटाला, ईओडब्ल्यू और एसीबी से जांच की मांग

छत्तीसगढ़: तेंदूपत्ता संग्रहण में 5.13 करोड़ रुपये का घोटाला, ईओडब्ल्यू और एसीबी से जांच की मांग

छत्तीसगढ़ के बीजापुर और राजनांदगांव जिलों में तेंदूपत्ता संग्रहण को लेकर एक बड़े घोटाले की शिकायत सामने आई है। रायपुर निवासी विवेक कुमार सिंह ने इस संबंध में आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) में शिकायत दर्ज कराई है। शिकायतकर्ता के अनुसार, इस कथित घोटाले से राज्य सरकार को 5.13 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंचा है।

विवेक कुमार सिंह का आरोप है कि तेंदूपत्ता संग्रहण के दौरान बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं। इस प्रक्रिया में न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन हुआ, बल्कि माप-तौल और भुगतान प्रक्रिया में हेरफेर कर सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये की चपत लगाई गई। उन्होंने अपनी शिकायत में संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत की आशंका भी जताई है।

शिकायत के मुताबिक, बीजापुर और राजनांदगांव के तेंदूपत्ता संग्रहन केंद्रों पर संग्रहण की मात्रा को फर्जी तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया, जबकि वास्तविक संग्रहण काफी कम था। साथ ही मजदूरों को भुगतान के नाम पर भी घपला किया गया। इस फर्जीवाड़े के जरिए कुछ अधिकारियों और ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया गया है।

इस मामले को लेकर ईओडब्ल्यू और एसीबी दोनों ही एजेंसियों ने शिकायत प्राप्त होने की पुष्टि की है और प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है। संबंधित दस्तावेज, भुगतान रसीदें, संग्रहण रजिस्टर और मजदूरों की सूची खंगाली जा रही है। सूत्रों के अनुसार, यदि प्रथम दृष्टया आरोप सही पाए जाते हैं, तो जल्दी ही मामले में एफआईआर दर्ज कर विस्तृत जांच शुरू की जाएगी।

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता एक महत्वपूर्ण वन उत्पाद है और हजारों आदिवासी परिवार इसकी संग्रहण प्रक्रिया से जुड़े होते हैं। राज्य सरकार इस कार्य को सहकारी समितियों और वन विभाग के माध्यम से संचालित करती है। ऐसे में इस तरह का घोटाला न केवल आर्थिक अपराध है, बल्कि आदिवासियों के अधिकारों और जीविका पर भी सीधा हमला है।

इस घोटाले की खबर सामने आने के बाद वन विभाग और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। विपक्षी दलों ने सरकार से तत्काल उच्चस्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। वहीं, जनसंगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे "आदिवासी श्रमिकों के अधिकारों की लूट" करार दिया है।

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