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सीजीएमएससी की लापरवाही से मरीजों की सेहत पर संकट, प्रेडनिसोलोन टैबलेट की गुणवत्ता पर उठे सवाल

सीजीएमएससी की लापरवाही से मरीजों की सेहत पर संकट, प्रेडनिसोलोन टैबलेट की गुणवत्ता पर उठे सवाल

छत्तीसगढ़ में मरीजों की सेहत से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पारदर्शिता और दवा आपूर्ति प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बार निशाने पर है छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन (CGMSC), जिसकी लापरवाही एक बार फिर उजागर हुई है। मामला प्रेडनिसोलोन टैबलेट (दवा कोड D-427) से जुड़ा है, जो अस्थमा, एलर्जी, गठिया और आंतों में सूजन जैसे गंभीर रोगों के इलाज में दी जाती है।

जानकारी के मुताबिक, CGMSC द्वारा सप्लाई की गई इस टैबलेट के एक बैच की गुणवत्ता पर संदेह जताया गया है। यह दवा छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बड़ी संख्या में मरीजों को वितरित की जा रही थी। लेकिन अब इसकी गुणवत्ता जांच में गड़बड़ियां सामने आने के बाद इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

दवा की गुणवत्ता पर क्यों उठे सवाल?

सूत्रों के अनुसार, राज्य की एक सरकारी प्रयोगशाला में जांच के दौरान यह सामने आया कि दवा की सक्रिय सामग्री (Active Ingredient) निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं थी। इससे न केवल दवा की प्रभावशीलता पर असर पड़ता है, बल्कि मरीजों की स्थिति और बिगड़ने का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में मरीजों को अपेक्षित राहत नहीं मिलती और इलाज के दौरान स्वास्थ्य और अधिक खराब हो सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रेडनिसोलोन एक स्टेरॉइड है, जिसका इस्तेमाल डॉक्टरों की निगरानी में ही किया जाना चाहिए। अगर इसकी गुणवत्ता में कमी हो या गलत डोजिंग हो, तो इससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर गंभीर असर पड़ सकता है। इससे मरीजों को संक्रमण, रक्तचाप में वृद्धि, हड्डियों में कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

CGMSC पहले भी विवादों में

गौरतलब है कि CGMSC पहले भी कई बार विवादों में रह चुका है। इससे पहले भी कुछ दवाओं के गुणवत्ता परीक्षण में फेल होने और एक्सपायर्ड दवाएं भेजे जाने के मामले सामने आ चुके हैं। इस बार भी जब मरीजों और डॉक्टरों ने दवा के असर पर सवाल उठाए, तब जांच के लिए बैच को प्रयोगशाला भेजा गया।

प्रशासन की चुप्पी और कार्रवाई की मांग

अब तक इस मामले में CGMSC की ओर से कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। लेकिन राज्य के स्वास्थ्य विभाग पर दबाव बढ़ रहा है कि वह इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जांच करवाए और जिम्मेदार अधिकारियों और दवा आपूर्तिकर्ता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।

जन स्वास्थ्य संगठनों और उपभोक्ता अधिकार मंचों ने भी मामले को गंभीर मानते हुए सरकार से मांग की है कि दवा आपूर्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और केवल प्रमाणित कंपनियों से ही दवाएं खरीदी जाएं।

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