देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर सपूतों की सूची में यदि कोई नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, तो वह है बलिदानी नायक कौशल यादव का। कारगिल युद्ध और विजय दिवस की चर्चा होते ही हर देशवासी के मन में जोश और गर्व की भावना जाग उठती है, और छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह भावना और भी विशेष हो जाती है, जब बात होती है भिलाई के लाल कौशल यादव की, जिन्होंने अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए शहादत दी थी।
साल 1999 का कारगिल युद्ध भारतीय सेना के इतिहास में साहस, पराक्रम और बलिदान का प्रतीक बन चुका है। इसी युद्ध के दौरान, नायक कौशल यादव ने दुश्मन के सामने अपनी जान की बाजी लगाते हुए असाधारण बहादुरी दिखाई। युद्ध के मैदान में उन्होंने अकेले ही पांच पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया था। यह उनकी सूझबूझ, रणकौशल और देशभक्ति का नायाब उदाहरण था। लेकिन इस वीरता का मूल्य उन्हें अपने प्राणों की आहुति देकर चुकाना पड़ा।
कौशल यादव का बलिदान न सिर्फ भिलाई, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। उनके साहसिक कार्य को देश ने भी सराहा और उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो कि भारत सरकार द्वारा युद्धकाल में अद्भुत वीरता के लिए दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है। यह सम्मान इस बात का प्रमाण है कि कौशल यादव ने न केवल अपना फर्ज निभाया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए एक आदर्श भी प्रस्तुत किया।
उनके बलिदान की गूंज आज भी हर वर्ष 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ के अवसर पर सुनाई देती है। इस दिन देशभर में कारगिल के शहीदों को याद किया जाता है, और छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से कौशल यादव को श्रद्धांजलि दी जाती है। भिलाई में उनके नाम पर विभिन्न स्मारक, स्कूल और चौक भी स्थापित किए गए हैं, जो लोगों को उनके योगदान की याद दिलाते हैं।
कौशल यादव की शहादत सिर्फ एक सैनिक की मौत नहीं, बल्कि वह एक जीवनदायिनी प्रेरणा है जो हर युवा को अपने देश के प्रति समर्पण, निष्ठा और साहस की मिसाल देती है। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश सर्वोपरि है और उसकी रक्षा के लिए अगर प्राण भी देने पड़ें, तो वह गर्व की बात है।
आज जब भी देश पर संकट आता है, कौशल यादव जैसे रणबांकुरों की गाथाएं हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की लौ जला देती हैं। छत्तीसगढ़ को ऐसे वीर पुत्र पर हमेशा नाज रहेगा।

