छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: फार्मासिस्ट भर्ती में बी.फार्मा डिग्रीधारियों को भी मिलेगा आवेदन का मौका
छत्तीसगढ़ में फार्मासिस्ट (ग्रेड-2) पदों पर चल रही भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक अहम मोड़ आया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस प्रक्रिया में बी.फार्मा डिग्रीधारियों को आवेदन से वंचित किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश देते हुए राज्य शासन और छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल (CG Vyapam) को कहा है कि बी.फार्मा (Bachelor of Pharmacy) डिग्रीधारी अभ्यर्थियों को भी आवेदन का पूरा अवसर दिया जाए।
हाई कोर्ट की युगलपीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद यह निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे फार्मेसी क्षेत्र में स्नातक डिग्रीधारी हैं और उनके पास पर्याप्त तकनीकी योग्यता है, फिर भी भर्ती के लिए निर्धारित अर्हता में केवल डिप्लोमा धारकों को ही पात्र माना गया है, जिससे उन्हें नाजायज तरीके से बाहर कर दिया गया।
कोर्ट ने यह मानते हुए कि बी.फार्मा डिग्रीधारियों को आवेदन से बाहर रखना प्रथम दृष्टया न्यायसंगत नहीं लगता, राज्य सरकार और व्यापम को निर्देशित किया है कि आगामी प्रक्रिया में इन उम्मीदवारों को भी शामिल किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आदेश अंतरिम है और अंतिम निर्णय याचिका के निस्तारण के बाद ही लिया जाएगा, लेकिन तब तक बी.फार्मा अभ्यर्थियों को आवेदन से वंचित नहीं किया जा सकता।
इस फैसले से राज्य के सैकड़ों बी.फार्मा डिग्रीधारी युवाओं को बड़ी राहत मिली है, जो लंबे समय से इस भर्ती प्रक्रिया में भागीदारी की मांग कर रहे थे। युवाओं और फार्मेसी से जुड़े संगठनों ने हाई कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा है कि यह फैसला योग्य उम्मीदवारों को उनका हक दिलाने वाला है।
उधर, कोर्ट के निर्देश के बाद अब CG Vyapam को भर्ती प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन करने होंगे और बी.फार्मा डिग्रीधारियों के लिए आवेदन का द्वार खोलना होगा। संभावना है कि इसके लिए संशोधित विज्ञापन या अतिरिक्त समयसीमा की घोषणा की जा सकती है।
यह मामला न केवल तकनीकी शिक्षा में समावेशिता से जुड़ा है, बल्कि भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने की दिशा में भी एक सकारात्मक उदाहरण है। हाई कोर्ट का यह हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि योग्य उम्मीदवारों को अवसर देने में किसी प्रकार की बाधा न्यायालयिक दृष्टिकोण से भी स्वीकार्य नहीं है।

