अबूझमाड़िया जनजाति ने माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में मतांतरण और मानव तस्करी के खिलाफ उठाई आवाज, राष्ट्रपति से लगाई गुहार
छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित अबूझमाड़ और नारायणपुर क्षेत्र में रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया ने एक बार फिर अपने अस्तित्व, संस्कृति और पहचान को बचाने की पुकार लगाई है। समाज के लोगों ने मतांतरण और मानव तस्करी जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है।
खतरे में है सांस्कृतिक विरासत
अबूझमाड़िया जनजाति को भारत सरकार द्वारा विशेष पिछड़ा जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह जनजाति अपने पारंपरिक जीवन, संस्कृति और आदिवासी परंपराओं के लिए जानी जाती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से बाहरी प्रभावों और संगठित गिरोहों के माध्यम से इन जनजातीय क्षेत्रों में तेजी से मतांतरण और मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे समुदाय में गहरी चिंता व्याप्त है।
समाज की मांगें:
अबूझमाड़िया समाज के वरिष्ठ सदस्यों ने अपनी शिकायत में स्पष्ट रूप से कहा है कि—
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बाहरी ताकतें धार्मिक रूपांतरण के लिए जनजातीय लोगों को झूठे प्रलोभन और दबाव के जरिए निशाना बना रही हैं।
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कुछ इलाकों में युवतियों और बच्चों को मानव तस्करी के माध्यम से शोषण का शिकार बनाया जा रहा है।
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यह प्रक्रिया न केवल उनकी सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा है, बल्कि क्षेत्र में अशांति और असुरक्षा का माहौल भी पैदा कर रही है।
राष्ट्रपति व राज्य सरकार से की अपील
अबूझमाड़िया समाज ने देश के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि—
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इस जनजाति को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत विशेष संरक्षण प्रदान किया जाए।
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क्षेत्र में सक्रिय धार्मिक संगठनों और एनजीओ की गतिविधियों की जांच कराई जाए।
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माओवाद प्रभावित इलाकों में प्रभावी निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि मानव तस्करी और बाहरी हस्तक्षेप पर रोक लगे।
सरकार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा
फिलहाल राज्य सरकार और प्रशासन की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार नारायणपुर और अबूझमाड़ क्षेत्रों में कुछ सुरक्षा एजेंसियों और जनजातीय कल्याण विभाग द्वारा प्रारंभिक स्तर पर जांच की प्रक्रिया शुरू की गई है।

