
भारत में आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर, हम एक ऐसी सच्ची कहानी साझा कर रहे हैं जो हमें याद दिलाती है कि कैसे कुछ बहादुर लोग अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए खड़े हुए। यह कहानी है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के वन क्षेत्र में बसे ग्राम खम्हरिया के निवासी मनीलाल चंद्राकर की, जिन्होंने आपातकाल के दौरान लाठियां खाईं, जेल गए और अपनी लड़ाई जारी रखी।
आपातकाल के समय की दास्तान
1975 में जब भारत में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लागू किया था, तो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए थे। विपक्ष और आंदोलनकारियों को दबाने के लिए नसबंदी, जेलबंदी, और अन्य कठोर कदम उठाए गए। इसी समय मनीलाल चंद्राकर जैसे लोग अपनी आवाज़ उठाने के लिए सामने आए। मनीलाल उस समय केवल एक युवा थे, लेकिन उन्होंने अपने इलाके में जन जागरूकता फैलाने का जिम्मा उठाया।
आंदोलन की शुरुआत
मनीलाल ने आपातकाल के खिलाफ विरोध शुरू किया। उन्होंने अपने इलाके के लोगों को यह समझाया कि उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को छीना जा रहा है। मनीलाल और उनके जैसे आंदोलनकारियों ने सड़कों पर उतरकर आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें पता था कि यह संघर्ष आसान नहीं होने वाला है, लेकिन लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना जरूरी था।
लाठियां और जेल
आपातकाल के दौरान मनीलाल और उनके साथियों ने कई रैलियां और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। लेकिन सत्ता द्वारा दमन की नीति अपनाई गई। मनीलाल को कई बार लाठियों से पीटा गया और अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन मनीलाल ने कभी हार नहीं मानी।
खून से लथपथ शर्ट
मनीलाल के लिए आपातकाल के दौरान का समय बहुत कठिन था। उन्होंने न केवल शारीरिक प्रताड़ना झेली, बल्कि उनका मनोबल भी टूटने के बजाय और मजबूत हुआ। उनका खून से लथपथ शर्ट, जो अब भी उनकी यादों का हिस्सा है, उस समय के संघर्ष और बलिदान की गवाही देती है। यह शर्ट उनके संघर्ष का प्रतीक बन चुकी है। मनीलाल आज भी इस शर्ट को संभालकर रखते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिला सकें कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र की कीमत क्या होती है।
50 वर्षों बाद
आज जब आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो गए हैं, मनीलाल चंद्राकर उस संघर्ष के अनुभव को साझा करते हैं। वह बताते हैं कि आपातकाल के दौरान उन्होंने और उनके जैसे आंदोलनकारियों ने जो लड़ाई लड़ी, वह सिर्फ एक राजनीतिक संघर्ष नहीं थी, बल्कि यह संघर्ष उन सभी नागरिकों के अधिकारों के लिए था, जो लोकतंत्र में विश्वास रखते थे। मनीलाल का कहना है कि आपातकाल एक काला अध्याय था, लेकिन वह चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां इससे सीखें और कभी भी अपने अधिकारों से समझौता न करें।