
उत्तर प्रदेश के भगवानपुर गोलंबर पर एक ऐसी सच्चाई सामने आई है, जो हर दिन सैकड़ों मजदूरों के चेहरे पर संघर्ष और मायूसी की कहानी बयां करती है। पेट की आग बुझाने और परिवार का पेट पालने की मजबूरी ने सैकड़ों मजदूरों को रोज़ सुबह भगवानपुर गोलंबर पर कुदाल-टोकरी लेकर खड़ा होने को मजबूर कर दिया है। कोई मिस्त्री है, कोई बेलदार, तो कोई मजदूरी की तलाश में हर दिन सुबह 6 बजे से पहले ही यहां पहुंच जाता है, जहां पर काम मिलने की उम्मीद होती है।
काम की तलाश में घंटों का इंतजार:
हर दिन सुबह से ही ये मजदूर गोलंबर पर जुट जाते हैं, उनकी नजरें उस समय किसी ठेकेदार या घर बनाने वाले व्यक्ति पर टिक जाती हैं, जो उन्हें एक दिन की मेहनत का काम दे सके। लेकिन वास्तविकता यह है कि कई बार घंटों इंतजार करने के बाद भी इन मजदूरों को काम नहीं मिलता। वे खाली हाथ ही घर लौटते हैं, और इस निराशा का सामना करते हैं कि अगले दिन फिर से यही संघर्ष शुरू होगा।
मजदूरों की जीवनशैली:
इन मजदूरों के लिए काम का मिलना किसी आशीर्वाद से कम नहीं है। हर दिन की मेहनत से एक-एक रुपए जोड़कर वे अपने परिवार का पेट पालने का काम करते हैं। लेकिन कई बार काम न मिलने की स्थिति में उनकी उम्मीद टूट जाती है। फिर भी वे अगले दिन फिर से उसी गोलंबर पर सुबह से खड़े रहते हैं, उम्मीद करते हुए कि शायद इस बार काम मिल जाए। उनके लिए यह संघर्ष न सिर्फ पैसे कमाने का, बल्कि अपने परिवार के लिए भोजन जुटाने का सवाल है।
मज़बूरी और खामोशी:
मजदूरी का काम करने वाले इन मजदूरों की खामोशी और उनकी मजबूरी का कोई ठिकाना नहीं है। समाज और सरकार की योजनाओं के बावजूद, ये लोग आज भी अपने काम के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार और समाज इन मजदूरों की स्थितियों को सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएंगे, ताकि वे दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हों।