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आखिर क्यों तेजस्वी यादव को सता रहा 1% वोट वाला डर? जानिए क्या है वोटर वेरिफिकेशन के बीच तीन दर्जन सीटों का गणित

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन जाँच (एसआईआर) को लेकर सियासी घमासान जारी है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है....
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बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन जाँच (एसआईआर) को लेकर सियासी घमासान जारी है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। तेजस्वी यादव ने एसआईआर को महज दिखावा करार देते हुए इसे मतदाता सूची से नाम हटाने की एक सुनियोजित साजिश बताया है। चुनाव आयोग द्वारा 80 प्रतिशत से ज़्यादा फॉर्म भरे जाने के दावे पर सवाल उठाने के साथ ही तेजस्वी ने यह भी कहा कि अगर यह आंकड़ा सही है तो इसमें कितने फॉर्म सत्यापित किए गए हैं। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि अगर एक प्रतिशत वोट कट गए तो लगभग तीन दर्जन सीटों के नतीजे प्रभावित होंगे। अगर एक प्रतिशत मतदाता भी छूट गए या दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं करा पाए, तो प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 3251 मतदाताओं के नाम कट जाएँगे। एसआईआर को लेकर तेजस्वी यादव और विपक्षी दलों की चिंता का मुख्य कारण मतदाताओं के नाम कटने का डर है। इस डर के पीछे क्या है?

एक प्रतिशत वोट का डर क्या है?

बिहार की मतदाता सूची में कुल 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण और सत्यापन के बाद अगर एक प्रतिशत मतदाताओं के नाम भी काटे जाएँ तो यह संख्या 7 लाख 90 हज़ार पहुँच जाती है। बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या 243 है। अगर सीटवार देखा जाए तो यह आँकड़ा प्रति सीट 3251 मतदाताओं तक पहुँचता है। अब तेजस्वी यादव की एक प्रतिशत वोट की चिंता के भी अपने कारण हैं।

दरअसल, बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 40 सीटों पर जीत-हार का फैसला 3500 से भी कम वोटों के अंतर से हुआ था। नालंदा हिल्स सीट से जदयू के कृष्णमुरारी शरण उर्फ प्रेम मुखिया 12 वोटों से जीते थे, जो 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की किसी भी सीट पर जीत का सबसे कम अंतर भी था। राजद के सुधाकर सिंह 189 वोटों से जीते। राजद ने डेहरी सीट 464 वोटों से, कुढ़नी सीट 712 वोटों से जीती। बखरी सीट से महागठबंधन के सूर्यकांत 777 वोटों से जीते।

कांटे की टक्कर वाली सीटें विपक्ष की चिंता का कारण वोटर लिस्ट से मतदाताओं के नाम काटे जाने को लेकर हैं। लगभग एक दर्जन सीटों पर नतीजे एक हज़ार से भी कम वोटों के रहे। लगभग पाँच दर्जन सीटें ऐसी थीं जहाँ जीत का अंतर लगभग पाँच हज़ार वोटों का था। कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा की लगभग पाँच दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहाँ राजनीतिक दलों को डर है कि एक प्रतिशत वोटों के घटने-बढ़ने से नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

तेजस्वी की चिंता सिर्फ़ कांटे की टक्कर वाली सीटों को लेकर?

बिहार में इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि क्या तेजस्वी की चिंता सिर्फ़ कांटे की टक्कर वाली सीटों को लेकर है? वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने बताया कि तेजस्वी की चिंता कांटे की टक्कर वाली सीटों से ज़्यादा सीमांचल और मिथिलांचल (नेपाल सीमा से सटे) सीटों को लेकर है। सीमांचल में यादव और मुस्लिम समीकरण राजद की मज़बूती का आधार रहा है। एसआईआर में ऐसे लोगों के मतदाता होने की बातें हो रही हैं, जो भारत के नागरिक नहीं हैं। कहीं न कहीं इससे राजद को अपने मूल वोटरों के छिटकने का डर सता रहा है।

SIR पर तेजस्वी ने क्या कहा?

SIR के बारे में तेजस्वी यादव ने कहा कि कई मतदाताओं के फॉर्म भर दिए गए हैं और उन्हें खुद भी इसकी जानकारी नहीं है। मतदाताओं के साथ-साथ बीएलओ भी इस प्रक्रिया को लेकर असमंजस में हैं। उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा और उसके शीर्ष नेता नीतीश कुमार ने प्रति बूथ 10 से 50 वोट काटने का लक्ष्य दिया है? तेजस्वी ने कहा कि अगर एक भी वोट कटा तो इस अपराध के लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार होंगे।

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