र्मी के मौसम में पेयजल की किल्लत बिहार की पुरानी समस्या है, लेकिन इस साल संकट के बाद कुछ पहले ही छाते दिख रहे हैं. इस साल अप्रैल महीने में ही पारा हाई हो गया है. इसका असर भूजलस्तर पर पड़ रहा है. राज्य के अधिकतर इलाकों में भूजल स्तर नीचे चला गया है. इसका असर फलों की खेती पर भी पड़ रहा है. सबसे ज्यादा प्रभावित पटना, गया, नवादा और नालंदा जिले के ग्रामीण इलाके हैं. उधर, अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी का असर आम और लीची की फसल खराब हो रही है. आम के टिकोले गिर रहे हैं और लीची के मंजर झड़ रहे हैं.
39 फुट पर पहुंच गया जलस्तर
एक जानकारी के अनुसार पटना के ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का स्तर 32 से 39 फुट पर पहुंच गया है. गया के इमामगंज, डुमरिया और बांकेबाजार के कुछ गांवों में जलस्तर 80 फ़ुट के आसपास है. अधिकतर चापाकल से पानी निकलना बंद हो गया है. पानी की किल्लत से आम जनों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. इधर, भोजपुर में भी करीब दो माह में भूजल स्तर छह इंच तक गिरा है. नदी से ताल- तलैया व आहर- पोखर तक में पानी कम होने लगा है.
नालंदा के 38 पंचायतों में पानी 50 फुट से नीचे
सोन तटीय क्षेत्रों में पेयजल संकट होने लगा है, क्योंकि सोननद भी सूखने लगा है. जहानाबाद की 4 पंचायतों में जल स्तर चेतावनी स्तर से भी नीचे है. सीवान में स्थिति सामान्य है. बक्सर शहर के कई मोहल्लों में चापाकल से पानी गिरना बंद हो गया है. नालंदा के परवलपुर, बेन, इस्लामपुर और एकंगरसराय प्रखंडों की करीब 38 पंचायतें पानी के मामले में डेंजर जोन में हैं. इन पंचायतों में 50 फुट या उससे भी नीचे भू-जलस्तर है. वहीं, कैमूर के पहाड़ी क्षेत्रों में पांच से दस फुट तथा मैदानी भाग में एक से दो फुट भूजल स्तर नीचे चला गया है.