श्रावणी मेले में दिखा अनोखा कांवड़िया, बना आत्मशुद्धि और प्रायश्चित का प्रतीक
सुल्तानगंज से देवघर तक की पवित्र कांवड़ यात्रा, श्रावणी मेले का एक अभिन्न हिस्सा है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और संकल्प का जीवंत प्रमाण बनती है। लेकिन इस बार इस पावन यात्रा मार्ग पर एक ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने न सिर्फ लोगों को चौंकाया, बल्कि भक्ति की गहराई और इंसानी आत्मा के प्रायश्चित की ताकत को भी उजागर किया।
एक अनोखी कांवड़ यात्रा
सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक के पवित्र कांवड़िया पथ पर हजारों भक्त शिव की भक्ति में लीन होकर डमरू और बम-बम भोले के जयकारों के साथ बढ़ रहे थे। इन्हीं के बीच एक अनोखा कांवड़िया भी नजर आया। उसके कदमों में थकान थी, लेकिन आंखों में पश्चाताप की नमी और दिल में आत्मशुद्धि की आग।
उस कांवड़िया ने तय किया कि वह हर एक कदम पर शिव का नाम लेता हुआ बिना किसी सुविधा के इस यात्रा को पूरा करेगा। सिर पर भभूत लगाए, साधारण वस्त्रों में लिपटा यह व्यक्ति न तो किसी समूह में था और न ही शोर करता था। वह चुपचाप चलता रहा—शिव के चरणों में अपने जीवन की गलतियों का प्रायश्चित करता हुआ।
श्रद्धा का नया आयाम
उसकी यात्रा सिर्फ एक तीर्थ नहीं थी, बल्कि भीतर से खुद को बदलने की कोशिश थी। लोगों ने जब उससे बात की, तो उसने बताया कि वर्षों तक वह गलत राह पर था, लेकिन अब वह शिव की भक्ति के माध्यम से अपने जीवन को नया अर्थ देना चाहता है। उसके लिए यह यात्रा मोक्ष का मार्ग थी, क्षमा की याचना थी।
श्रद्धालुओं ने किया नमन
रास्ते में कई श्रद्धालुओं ने जब उसकी कहानी सुनी, तो उन्होंने उसे "प्रायश्चिती कांवड़िया" नाम दिया। लोगों ने कहा कि जहाँ एक ओर कांवड़ यात्रा भक्ति का पर्व है, वहीं यह व्यक्ति दिखाता है कि यह यात्रा आत्मग्लानि से आत्मशुद्धि तक का रास्ता भी हो सकती है।
समाज के लिए संदेश
इस कांवड़िया की कहानी हमें यह सिखाती है कि भक्ति सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों से जुड़ा एक भाव है। जब दिल से पुकार होती है, तो शिव भी सुनते हैं और इंसान को खुद से मिलवा देते हैं।

