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ये है कलयुग का श्रावण! मां-बाप की आखिरी ख्वाहिश के लिए बेटे ने बनाया 10 करोड़ का मंदिर, कहानी जानकर आंखों से आ जाएंगे आंसू

बिहार के छपरा ज़िले के नैनी गाँव में एक बेहद खूबसूरत और भव्य मंदिर बना है। यह अब श्रद्धालुओं के बीच आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गया है। ख़ास बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण किसी ट्रस्ट या संस्था ने नहीं, बल्कि एक बेटे ने अपने माता-पिता की...
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बिहार के छपरा ज़िले के नैनी गाँव में एक बेहद खूबसूरत और भव्य मंदिर बना है। यह अब श्रद्धालुओं के बीच आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गया है। ख़ास बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण किसी ट्रस्ट या संस्था ने नहीं, बल्कि एक बेटे ने अपने माता-पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अकेले ही करवाया था। इस मंदिर की कुल लागत लगभग 9 से 10 करोड़ रुपये बताई जाती है।

इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि इसके निर्माण में न तो सीमेंट, न ही लाठी या रेत का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर पूरी तरह से पत्थरों से बना है, जिन्हें आगरा, राजस्थान, केरल जैसे राज्यों से मँगवाया गया है। महंगे और मज़बूत पत्थरों से निर्मित यह मंदिर वास्तुकला और शिल्पकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस मंदिर को 'नैनी द्वारकाधीश मंदिर' के नाम से जाना जाता है और इसकी प्रसिद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

पाँच देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित

इस भव्य मंदिर में पाँच प्रमुख देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं - भगवान द्वारकाधीश (कृष्ण), माँ दुर्गा, गणेश, भगवान शिव और बजरंगबली (हनुमान)। यहाँ दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। अब बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे अन्य राज्यों से भी लोग यहाँ पहुँचने लगे हैं।

बेटे ने निभाई ज़िम्मेदारी, माता-पिता की मनोकामना पूरी की

इस मंदिर के पीछे की कहानी भी बेहद भावुक है। नैनी गाँव के मूल निवासी राजीव सिंह ने अपने माता-पिता की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के पुजारी मनीष कुमार मिश्रा के अनुसार, राजीव सिंह के माता-पिता ने मंदिर निर्माण का सपना देखा था और इसकी नींव रखी थी। लेकिन दुर्भाग्य से नींव रखने के कुछ समय बाद ही दोनों का निधन हो गया।

अधूरी इच्छा पूरी हुई

इसके बाद, बेटे राजीव सिंह ने संकल्प लिया कि वह अपने माता-पिता की अधूरी इच्छा को हर हाल में पूरा करेगा। राजीव सिंह ने गुजरात में अपना व्यवसाय स्थापित किया है और उनका पूरा परिवार वहीं रहता है, लेकिन उन्होंने अपने गाँव में कुछ ऐसा किया है जिसे लोग वर्षों तक याद रखेंगे।

आस्था, समर्पण और सेवा का प्रतीक

यह मंदिर केवल ईंट-पत्थर की संरचना नहीं है, बल्कि एक बेटे की अपने माता-पिता के प्रति आस्था और समर्पण का प्रतीक बन गया है। यह सिद्ध करता है कि यदि कोई कार्य सच्चे मन से शुरू किया जाए तो वह दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकता है।

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