बदलते बिहार में एक गांव की पुरानी मजबूरी, आज भी नाव से स्कूल जाने को मजबूर हैं बच्चे
कभी लोग गर्व और संघर्ष की कहानी बताते हुए कहा करते थे कि वे नाव से नदी पार कर स्कूल जाया करते थे। वक्त बदला, सड़कें बनीं, पुल खड़े हुए और बिहार की तस्वीर काफी हद तक बदल गई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि आज भी बिहार का एक ऐसा गांव मौजूद है, जहां हालात दो दशक पुराने दौर जैसे ही हैं। यहां के बच्चे आज भी जान जोखिम में डालकर नाव से नदी पार कर स्कूल पहुंचते हैं। हालात ऐसे रहे तो आज से 20 साल बाद, जब ये बच्चे जवान होंगे, तो वे भी यही कहेंगे—“हम तो नाव से स्कूल जाते थे।”
यह गांव विकास के तमाम दावों के बीच बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। गांव को मुख्य सड़क और स्कूल से जोड़ने के लिए अब तक कोई पक्का पुल नहीं बन पाया है। बरसात के दिनों में हालात और भी भयावह हो जाते हैं, जब नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और नाव ही एकमात्र सहारा बनती है। छोटे-छोटे बच्चे, स्कूल बैग कंधे पर लटकाए, रोज़ाना नदी पार करते हैं। कई बार नावों की हालत जर्जर होती है, लेकिन मजबूरी उन्हें इसी रास्ते से जाने को मजबूर करती है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्षों से पुल निर्माण की मांग करते आ रहे हैं। कई बार जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई गई, अधिकारियों को आवेदन दिए गए, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। ग्रामीणों के मुताबिक, चुनाव के समय नेता आते हैं, वादे करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। नतीजा यह है कि बच्चों की पढ़ाई और उनकी सुरक्षा दोनों खतरे में हैं।
अभिभावकों की चिंता सबसे ज्यादा है। उनका कहना है कि पढ़ाई जरूरी है, इसलिए वे बच्चों को रोक भी नहीं सकते। लेकिन हर सुबह बच्चों को नाव पर बैठते देख दिल दहल जाता है। कई बार तेज धारा और मौसम खराब होने के कारण हादसे की आशंका बनी रहती है। इसके बावजूद प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
शिक्षा और विकास को लेकर सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करे, लेकिन यह गांव उन दावों की जमीनी हकीकत दिखाता है। सवाल यह है कि जब बिहार के कई हिस्सों में आधुनिक पुल और सड़कें बन चुकी हैं, तो आखिर इस गांव के बच्चों को कब तक नाव के सहारे अपने भविष्य की ओर जाना पड़ेगा?

