Samachar Nama
×

‘जंगलराज’ का मुद्दा बना बीजेपी की जीत की वजह, लेकिन इसी दौर में तीन पुलिस अफसरों से कांपते थे अपराधी

s

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार ‘जंगलराज’ का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ। कानून-व्यवस्था को लेकर उठे सवालों और पुराने दौर की यादों ने मतदाताओं पर गहरा असर डाला और बीजेपी को बंपर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन इस सियासी बहस के बीच एक सच्चाई अक्सर नजरअंदाज कर दी जाती है—कि उसी तथाकथित जंगलराज के दौर में तीन ऐसे पुलिस अफसर भी थे, जिनके नाम से अपराधी थर-थर कांपते थे

90 के दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों को बिहार की राजनीति में अक्सर अपराध, अपहरण और अराजकता के लिए याद किया जाता है। इसी दौर को विपक्ष ने ‘जंगलराज’ का नाम दिया। हालांकि, इसी समय बिहार पुलिस में कुछ ऐसे जांबाज अफसर भी तैनात थे, जिन्होंने सीमित संसाधनों और राजनीतिक दबावों के बावजूद अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की।

इन पुलिस अफसरों की पहचान उनकी बेहद सख्त कार्यशैली, तेज़ कार्रवाई और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति से बनी। कहा जाता है कि उनके नाम भर से अपराधी इलाका छोड़ने को मजबूर हो जाते थे। अपहरण, डकैती और संगठित अपराध के खिलाफ उन्होंने कई बड़े गिरोहों की कमर तोड़ी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘जंगलराज’ की कहानी को चुनावी मुद्दा बनाने में अक्सर पूरे सिस्टम को एक ही नजर से देखने की गलती हो जाती है। जबकि सच्चाई यह है कि उस दौर में भी कुछ पुलिस अधिकारी ऐसे थे, जिन्होंने अपने काम से यह साबित किया कि इच्छाशक्ति हो तो हालात से लड़ा जा सकता है।

स्थानीय लोग आज भी उन अफसरों को याद करते हैं। कई इलाकों में बुजुर्ग बताते हैं कि जिस समय आम लोग डर के साये में जी रहे थे, उसी समय ये पुलिस अधिकारी आम जनता के लिए उम्मीद की किरण बने हुए थे। रातों-रात छापेमारी, अपराधियों की गिरफ्तारी और त्वरित कार्रवाई उनकी पहचान थी।

हालांकि, सियासत में इन बातों की जगह कम ही मिलती है। चुनावी मंचों पर जंगलराज को एक ऐसे दौर के रूप में पेश किया जाता है, जहां व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। बीजेपी ने 2025 के चुनाव में इसी नैरेटिव को मजबूती से आगे बढ़ाया और जनता का भरोसा जीतने में सफल रही।

विशेषज्ञों का कहना है कि कानून-व्यवस्था किसी एक सरकार या एक दौर की कहानी नहीं होती। यह प्रशासन, पुलिस और राजनीतिक इच्छाशक्ति—तीनों का साझा परिणाम होती है। जंगलराज के दौर में जहां अपराध चरम पर था, वहीं कुछ पुलिस अफसरों की बहादुरी यह भी दिखाती है कि सिस्टम के भीतर रहते हुए भी बदलाव संभव था

आज जब जंगलराज एक चुनावी नारा बन चुका है, तब यह याद करना जरूरी है कि इतिहास केवल काले और सफेद रंगों में नहीं लिखा जाता। उस दौर की सच्चाई में डर भी था, अव्यवस्था भी थी—लेकिन कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसरों की हिम्मत और ईमानदारी भी उसी कहानी का हिस्सा है।

Share this story

Tags