
बिहार का एक ऐतिहासिक और धार्मिक शहर, आज भी पितरों की मुक्ति का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि देशभर से श्रद्धालु प्रतिदिन यहां आते हैं और धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ पिंडदान कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
गयाजी का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और रामायण-महाभारत जैसी पवित्र पुस्तकों में भी मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरण चिन्ह जिस स्थान पर पड़े, वहीं फल्गु नदी के तट पर स्थित यह स्थल पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
हर दिन हजारों की संख्या में पिंडदानी यहां पहुंचते हैं। वे यहां के विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी, श्राद्ध स्थल, और अन्य पवित्र स्थानों पर वैदिक ब्राह्मणों की सहायता से पिंडदान की प्रक्रिया पूरी करते हैं। श्राद्धकर्म और पिंडदान की यह परंपरा शास्त्रों में वर्णित विधि के अनुसार सम्पन्न कराई जाती है।
गया आने वाले पिंडदानियों की सुविधा के लिए प्रशासन द्वारा विशेष प्रबंध किए जाते हैं। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यात्रियों के ठहरने, भोजन और सुरक्षा की व्यवस्थाएं निरंतर सुधारी जा रही हैं। वहीं, श्राद्धपक्ष (पितृपक्ष) के दौरान तो यहां लाखों श्रद्धालु एक साथ पहुंचते हैं, जिससे यह स्थान एक विराट तीर्थस्थली का रूप ले लेता है।
स्थानीय पुरोहित समाज और धर्मगुरुओं का कहना है कि "गयाजी केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह पितृ भक्ति की जीती-जागती मिसाल है। यहां पिंडदान करने से न केवल पितरों को मोक्ष मिलता है, बल्कि जीवित व्यक्तियों के जीवन में भी शांति और समृद्धि आती है।"