सरकार या पार्टी... तय करें नीतीश', उपेंद्र कुशवाहा का तीखा संदेश, क्या फिर टूटने की कगार पर है साथ?
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को अनोखे अंदाज में जन्मदिन की बधाई दी। उन्होंने निशांत को उम्मीद दी और नीतीश कुमार को सलाह दी कि अब वह संगठन और सरकार की जिम्मेदारी एक साथ नहीं संभाल पा रहे हैं। परोक्ष रूप से उन्होंने नीतीश कुमार को निशांत को राजनीतिक विरासत सौंपने की सलाह दी। इसके बाद बिहार की सियासत में निशांत की चर्चा फिर शुरू हो गई है। इधर, जेडीयू का रंग भी कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। पहली बार जेडीयू में एक ही मुद्दे पर अलग-अलग सुर सुनाई दे रहे हैं।
निशांत फिर चर्चा में
पिछले 6-8 महीनों से निशांत के राजनीति में आने की चर्चा हो रही है। चर्चा तब शुरू हुई जब निशांत अपने पिता के साथ एक पारिवारिक समारोह में गांव गए थे। वहां पहली बार किसी ने उनके मुंह से राजनीतिक शब्द सुने। उन्होंने लोगों से अपने पिता नीतीश कुमार को फिर से वोट देने की अपील की। उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार के विकास के लिए बहुत कुछ किया है। इसके बाद भी उन्होंने कई मौकों पर राजनीति पर बात की। इसी के चलते निशांत के राजनीति में आने के कयास लगाए जा रहे थे। उपेंद्र कुशवाहा के बधाई संदेश के बाद इस पर फिर से चर्चा होने लगी है। जगदीप धनखड़ के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद नए उपाध्यक्ष बनने वालों में नीतीश का नाम भी प्रमुखता से लिया जाने लगा है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर ऐसा हुआ तो निशांत राजनीति में दमदार एंट्री कर सकते हैं।
नीतीश के हालात दे रहे हैं मौका
नीतीश कुमार के अजीबोगरीब व्यवहार और मीडिया से दूरी के कारण उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं। सार्वजनिक मंचों से उनका संबोधन सुने हुए काफी समय हो गया है। लोगों ने उन्हें सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों में ही बोलते देखा और सुना है। उसमें भी वे अक्सर गलतियां कर देते हैं। कभी वे पीएम के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेते हैं तो कभी 400 की जगह 4000 कह देते हैं। एक बार मंच पर तो वे पीएम का हाथ देखने लगे थे। अपने मंत्री अशोक चौधरी के पिता की पुण्यतिथि के मौके पर जब वे उनके घर गए तो उन्होंने अशोक चौधरी पर श्रद्धांजलि के फूल फेंके थे। राष्ट्रगान के दौरान, उन्होंने अपने अगल-बगल खड़े लोगों को हिलाया और सामने खड़े लोगों का अभिवादन करने लगे। इससे लोगों में यह संदेश फैल गया कि नीतीश कुमार अब मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गए हैं।
तेजस्वी और पीके पगड़ी उछाल रहे हैं
इस स्थिति को लेकर विपक्षी नेता नीतीश पर निशाना साध रहे हैं। राजद नेता और नीतीश के साथ दो बार उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव उन्हें बूढ़ा, बीमार और लाचार बताते नहीं थकते। नीतीश कुमार के बारे में ऐसी बातें उनके हर भाषण में ज़रूर होती हैं। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर तो यहाँ तक कहते हैं कि नीतीश के नेतृत्व में बिहार की 13 करोड़ आबादी के लिए किसी दुर्भाग्य से इनकार नहीं किया जा सकता। उनकी हालत के बारे में प्रशांत का दावा है कि नीतीश को अब अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के नाम भी याद नहीं हैं। विपक्ष के ये दोनों नेता नीतीश कुमार की इसी हालत को उनकी पगड़ी उछालने का आधार बना रहे हैं। लोग अब नीतीश के सार्वजनिक मंचों पर उनके भुलक्कड़पन और हाव-भाव से वाकिफ हो चुके हैं। ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा निशांत कुमार को उम्मीद की नज़र से देख रहे हैं और नीतीश को जेडीयू बचाने की सलाह दे रहे हैं, तो लोगों के मन में यह बात घर करने लगी है कि सीएम अब सत्ता-संगठन की दोहरी ज़िम्मेदारी संभालने में सक्षम नहीं हैं।
जेडीयू में अब कई खेमे बन गए हैं!
जेडीयू अब पहले जैसी नहीं रही। पहले पार्टी पर नीतीश कुमार का दबदबा था। उनके कमज़ोर होते ही अब उनके सांसद-विधायक बेकाबू होने लगे हैं। पहली बार जेडीयू के अंदर पार्टी लाइन से हटकर आवाज़ उठी है। बांका से जेडीयू सांसद गिरिधारी यादव और परबत्ता विधायक डॉ. संजीव के कुछ ऐसे ही सुर बुधवार को सुनाई दिए। दोनों ने अपने-अपने तरीके से एसआईआर को लेकर पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ टिप्पणी की। हालाँकि दोनों ने इसे अपनी निजी राय बताया है, लेकिन जनता में संदेश गया है। दोनों का कहना है कि यह समय एसआईआर के लिए अनुकूल नहीं है। गिरिधारी यादव ने अपनी निजी समस्याओं के बारे में बताया। यादव ने कहा कि उनके जैसे व्यक्ति को दस्तावेज़ जुटाने में 10 दिन लग गए। उनका बेटा अमेरिका में है। उनके फॉर्म पर दस्तखत कौन करेगा? SIR के विरोध के बीच सत्तारूढ़ JDU के सांसद-विधायक की ऐसी टिप्पणी अच्छी बात नहीं मानी जा सकती। इसके अलावा, JDU के 4 नेताओं के अलग-अलग गुट हैं। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा के अपने-अपने खेमे हैं, जबकि राज्य सरकार के मंत्री विजय चौधरी और अशोक चौधरी के अलग-अलग गुट हैं। ऐसे में निशांत कुमार की किसी बड़े पद पर एंट्री पचेगी, इसमें संदेह है।
नीतीश कुमार का इशारा ज़रूरी
हालांकि, निशांत को राजनीति में लाने का फैसला नीतीश कुमार को लेना है, जो राजनीति में परिवारवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं। वे उस कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने जीते जी के परिवार के किसी भी व्यक्ति को राजनीति में जगह नहीं दी। रामनाथ ठाकुर भी राज्यसभा के सदस्य तभी बने जब उनके पिता नहीं रहे। कर्पूरी ठाकुर की अनुपस्थिति में उन्हें यह मौका भी नीतीश कुमार ने ही दिया। रामनाथ ठाकुर की रुचि पहले से ही राजनीति में थी, लेकिन निशांत की रुचि कभी राजनीति में नहीं रही। उनका पहला राजनीतिक बयान सामने आने के बाद लोगों ने कयास लगाना शुरू कर दिया कि आध्यात्म में रुचि रखने वाले निशांत राजनीति पर भी बात कर सकते हैं। निशांत को राजनीति में लाने के लिए उनके समर्थकों ने समय-समय पर पोस्टर लगाए हैं, लेकिन खुद नीतीश ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है। संभव है कि संसदीय राजनीति से संन्यास लेने के बाद ही वे इस पर मुहर लगाएँ।

