बिहार की राजनीति में बदला फंडिंग का समीकरण, जदयू की आय में उछाल तो एलजेपी बनी नई सशक्त ताकत
चुनावी राजनीति में पार्टी फंड की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। चुनाव लड़ने से लेकर संगठन को मजबूत करने तक, हर स्तर पर धन एक अहम फैक्टर होता है। लेकिन पार्टी फंडिंग का दूसरा और ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू यह भी होता है कि किस दल के सत्ता में आने की संभावना ज्यादा है। इसी आधार पर बड़ी कंपनियां और उद्योगपति अपने-अपने स्तर पर आकलन करते हैं और उसी अनुसार राजनीतिक दलों को आर्थिक सहयोग देते हैं। वर्ष 2024-25 के आंकड़े बिहार की राजनीति में इसी बदलते समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं।
सूत्रों और उपलब्ध रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2024-25 में बिहार की क्षेत्रीय पार्टियों की फंडिंग में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की फंडिंग में जहां उल्लेखनीय उछाल दर्ज किया गया है, वहीं चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एक नई सशक्त राजनीतिक ताकत के रूप में उभरती नजर आ रही है। यह बदलाव न सिर्फ आर्थिक आंकड़ों में दिख रहा है, बल्कि इसके राजनीतिक संकेत भी काफी अहम माने जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बड़ी कंपनियां और उद्योगपति निवेश से पहले यह आकलन करते हैं कि कौन-सी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में है या भविष्य में सत्ता का हिस्सा बन सकती है। हालांकि, वे संभावित विपक्षी दलों को भी फंड देते हैं, लेकिन यह राशि आमतौर पर सत्तारूढ़ या मजबूत गठबंधन का हिस्सा बनने वाली पार्टियों से कम होती है। बिहार में भी यही ट्रेंड साफ तौर पर नजर आ रहा है।
आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2024-25 में जदयू को कुल 18.69 करोड़ रुपये की फंडिंग प्राप्त हुई है। यह राशि पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक मानी जा रही है। जानकारों का मानना है कि एनडीए गठबंधन में जदयू की मजबूत स्थिति और नीतीश कुमार की राजनीतिक पकड़ के कारण कॉरपोरेट सेक्टर का भरोसा पार्टी पर बना हुआ है। सरकार में हिस्सेदारी और प्रशासनिक अनुभव के चलते जदयू को एक स्थिर राजनीतिक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं, दूसरी ओर चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी फंडिंग के मामले में सभी का ध्यान खींचा है। पार्टी को इस अवधि में करीब 11 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली है, जो इसे बिहार की एक उभरती हुई सशक्त क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करती है। खासकर युवा नेतृत्व, दलित वोट बैंक और केंद्र की राजनीति में चिराग पासवान की सक्रियता को देखते हुए उद्योगपतियों और कंपनियों का भरोसा एलजेपी (रामविलास) पर बढ़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फंडिंग केवल पैसों का खेल नहीं है, बल्कि यह भविष्य की राजनीति का संकेत भी देती है। जदयू जहां अपनी पुरानी साख और सत्ता में भागीदारी के बल पर आगे बढ़ रही है, वहीं एलजेपी (रामविलास) एक नए विकल्प और संभावित पावर सेंटर के रूप में उभर रही है।
कुल मिलाकर, वर्ष 2024-25 की पार्टी फंडिंग के आंकड़े यह साफ करते हैं कि बिहार की राजनीति में न सिर्फ गठबंधन बल्कि आर्थिक समर्थन का संतुलन भी धीरे-धीरे बदल रहा है। आने वाले चुनावों में इसका असर राजनीतिक रणनीति और सत्ता समीकरणों पर साफ तौर पर देखने को मिल सकता है।

