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बिहार चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने खोले पत्ते, महागठबंधन के सीएम फेस को लेकर दिया चौंकाने वाला बयान

बिहार चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने खोले पत्ते, महागठबंधन के सीएम फेस को लेकर दिया चौंकाने वाला बयान

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि महागठबंधन (I.N.D.I.A. ब्लॉक) का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? क्या इस बार भी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इस भूमिका में रहेंगे, या फिर किसी अन्य नाम पर सहमति बनेगी? इस सवाल का जवाब खुद तेजस्वी यादव ने एएनआई के पॉडकास्ट में दिया, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

सवाल पर पहले झिझके तेजस्वी, फिर दिया संकेत

जब तेजस्वी यादव से पॉडकास्ट के दौरान पूछा गया कि क्या वह महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, तो वे कुछ क्षण चुप रहे। उनकी जुबान लड़खड़ाई, और फिर वे बोले:

"देखिए, यह फैसला हम अकेले नहीं कर सकते। यह गठबंधन का सामूहिक निर्णय होगा। लेकिन हमारा उद्देश्य स्पष्ट है—बिहार को नए रास्ते पर ले जाना।"

तेजस्वी ने यह भी कहा कि,

"पिछले चुनाव में हमने बड़ी मजबूती से मुकाबला किया और जनता का समर्थन मिला। जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी, हम पूरी मजबूती से निभाएंगे।"

कांग्रेस के लिए बढ़ी चिंता?

तेजस्वी यादव के इस जवाब को राजनीतिक संकेत माना जा रहा है कि आरजेडी एक बार फिर महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोकने वाली है। चूंकि बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, हम और अन्य दल शामिल हैं, ऐसे में कांग्रेस की यह मंशा हो सकती है कि किसी सर्वसम्मत नेता को सामने लाया जाए, ताकि सीट बंटवारे और वोट ट्रांसफर में कोई बाधा न आए।

तेजस्वी का जवाब हालांकि संयमित था, लेकिन राजनीतिक संदेश साफ था—आरजेडी खुद को गठबंधन की सबसे मजबूत पार्टी मानती है और उसी हिसाब से वह नेतृत्व की भूमिका चाहती है।

आरजेडी की रणनीति स्पष्ट

आरजेडी नेता लगातार दावा करते आए हैं कि पार्टी बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी ताकत है और तेजस्वी यादव ने बतौर डिप्टी सीएम (पूर्व) राज्य में विकास की नई लकीर खींची है। वहीं आरजेडी का युवा नेतृत्व, खासकर युवाओं और मुस्लिम-यादव (MY) वोटबैंक में, मजबूत पकड़ बनाए हुए है।

गठबंधन में चुनौती

महागठबंधन की मजबूती के लिए सभी दलों को एक मंच पर लाना अब बड़ी चुनौती है। तेजस्वी की स्पष्ट महत्वाकांक्षा से कुछ छोटे दलों और कांग्रेस के भीतर खेमेबाजी का असर भी सामने आ सकता है।

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