
ई-शिक्षा कोष की ऑनलाइन उपस्थिति के चलते अब गुरुजी को अपनी अधिकांश उपस्थिति विद्यालयों में सुनिश्चित करनी पड़ी है, जो पहले कभी इतनी कड़ी निगरानी में नहीं थी। लेकिन इस बदलाव के बावजूद कुछ शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए स्कूल में रहते हुए भी बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब शिक्षक स्कूल में तो उपस्थित रहते हैं, लेकिन कक्षा में बच्चों को पढ़ाने की बजाय मोबाइल पर रील्स देखने या बेंच-डेस्क पर सोने में समय बिता रहे होते हैं।
ई-शिक्षा कोष का उद्देश्य और प्रभाव
ई-शिक्षा कोष की स्थापना शिक्षकों की उपस्थिति और शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए की गई थी। यह पहल शिक्षकों की जिम्मेदारी और सक्रियता को सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई थी, ताकि वे नियमित रूप से विद्यालयों में रहें और शिक्षण कार्य में पूरी तरह से संलग्न हों। इसके तहत ऑनलाइन उपस्थिति से यह सुनिश्चित किया गया था कि शिक्षक समय पर विद्यालय आएं और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें।
शिक्षकों की लापरवाही
हालांकि, ई-शिक्षा कोष ने कई सुधारों की शुरुआत की है, लेकिन कुछ शिक्षक अभी भी अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर रहे हैं। स्कूल में उनकी उपस्थिति तो है, लेकिन शिक्षण कार्य में संलग्न होने के बजाय वे मोबाइल पर मनोरंजन करते हैं या कक्षा में अनुपस्थित रहते हैं। कुछ शिक्षक कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ाने के बजाय बेहिसाब समय बर्बाद कर रहे हैं, जो बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
शिक्षा का नुकसान
जब शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते हैं और कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाने में लापरवाह रहते हैं, तो इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ता है। यह उनके शिक्षा स्तर को प्रभावित करता है और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को रुकवा सकता है। आर्थिक रूप से कमजोर और शहरी क्षेत्रों के बच्चों के लिए यह और भी चिंताजनक है, क्योंकि वे इस मौके का लाभ नहीं उठा पाते।
आवश्यक कदम और समाधान
शिक्षकों के इस प्रकार की लापरवाही पर अंकुश लगाने के लिए, शिक्षा विभाग को कड़ी निगरानी रखनी होगी। यदि शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते हैं, तो उन्हें कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, शिक्षकों को सही तरीके से प्रशिक्षित करने और प्रेरित करने के लिए और भी कार्यशालाएं और कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, ताकि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो।